Book Title: Sramana 2012 07
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 14
________________ अर्द्धमागधी आगम-साहित्य में अस्तिकाय : 5 द्रव्य का विभाजन आगमों में षड्द्रव्यों के अतिरिक्त जीव एवं अजीव के रूप में भी किया गया है, यथाकइविहा णं भंते! दव्वा पण्णत्ता? गोयमा दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा- जीवदव्वा य अजीवदव्वा या भगवन्! द्रव्य कितने प्रकार से प्रज्ञप्त हैं? गौतम! दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं- जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य। व्याख्याप्रज्ञप्ति में अजीवद्रव्यों को पुनः रूपी - अजीवद्रव्य एवं अरूपी - अजीवद्रव्य में विभक्त किया गया है। प्रज्ञापनासूत्र में अरूपी अजीवद्रव्य की 10 पर्याय एवं रूपी - अजीवद्रव्य की 4 पर्याय निरूपित हैं। अरूपी अजीव द्रव्य के 10 पर्याय हैं।1- 1. धर्मास्तिकाय, 2. धर्मास्तिकाय के देश, 3. धर्मास्तिकाय के प्रदेश, 4. अधर्मास्तिकाय, 5. अधर्मास्तिकाय के देश, 6. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, 7. आकाशास्तिकाय, 8. आकाशास्तिकाय के देश, 9. आकाशास्तिकाय के प्रदेश और 10. अद्धासमय। अरूपी से तात्पर्य है वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श से रहित। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय एवं कालद्रव्य वर्णादि से रहित होने के कारण अरूपी हैं। रूपी द्रव्य एक ही है - पुद्गलास्तिकाय। इसके चार पर्याय हैं - स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु पुद्गल। पुद्गल का स्वतन्त्र खण्ड स्कन्ध, उसका कल्पित अंश देश एवं उसका परमाणु जितना कल्पित अंश प्रदेश कहा जाता है। परमाणु पुद्गल स्वतंत्र है। देश एवं प्रदेश के धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्यों में भी कल्पित अंश एवं परमाणु जितने कल्पित अंश ही वाच्य हैं। रूपी-अजीवद्रव्य की अनन्त पर्यायों का भी प्रतिपादन हुआ है। गौतम गणधर के प्रश्न के उत्तर में प्रज्ञापनासूत्र में भगवान महावीर ने स्पष्ट किया है- गौतम! परमाणु पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, असंख्यात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि रूपी-अजीवपर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं। जीवद्रव्य की भी अनन्त पर्याय स्वीकृत हैं। इसका कारण प्रतिपादित करते हुए कहा गया है- असंख्यात नैरयिक हैं, असंख्यात असुरकुमार यावत्

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