Book Title: Sramana 2012 07
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 30
________________ प्राकृतकथा वाङ्मय में निहित वैश्विक संदेश : 21 (1) नीति कथा ( Didactic Tale ) (2) लोक कथा ( Popular Tale )। (1) नीति कथा - नारायण पण्डित ने नीति कथाओं का प्रयोजन बताते हुये कहा है कि नीति कथाओं में बालकों को कथाओं के माध्यम से नीति की शिक्षा दी जाती है- 'कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते । इससे स्पष्ट है कि नीति कथा ग्रन्थों में नीति एवं धर्म के विषयों का प्रतिपादन रहता है। इनमें नीति और धर्म शास्त्रों में वर्णित व्यावहारिक जीवन में सफलता प्राप्ति के साधनों - अपने धर्म का पालन, मान-मर्यादा का उल्लंघन न करना, आपत्ति - विपत्ति में धैर्य न छोड़कर साहस से कार्य करना, मित्र की रक्षा करना आदि का सरल एवं शीघ्रानुकरणीय चित्रण होता है। नीति कथाओं के पात्र मनुष्य जाति के न होकर तिर्यक् जाति के पशु-पक्षी आदि होते हैं। ये पशु-पक्षी ही मानववत् अपना सभी कार्य व्यापार करते हैं। इनमें मित्रता - शत्रुता, राग-द्वेष, सन्धि - विग्रह आदि मनुष्य के समान ही देखे जाते हैं। इन्हें अपने हित-अहित, मान-अपमान का पूर्ण ध्यान रहता है। इन नीति ग्रन्थों की वर्ण्य कथा गद्यात्मक होती है तथा जहाँ कहीं नीति अथवा उपदेश देना होता है वहाँ पर पद्यों का प्रयोग होता है। ये पद्य प्राय: पूर्ववर्त्ती नीतिग्रन्थों से उद्धृत किये जाते हैं। इन नीति वचनों से पूर्वकथन की पुष्टि की जाती है। ( 2 ) लोक कथा - लोक कथायें भी नीतिकथाओं के अधिकांश लक्षणों से ही युक्त होती हैं, दोनों में जो वैभिन्य है, वह निम्नलिखित रूप में द्रष्टव्य है(i) नीति कथायें मुख्यतः उपदेशात्मक होती हैं जबकि लोक कथायें मनोरंजनात्मक। नीति कथाओं की योजना में कवि का प्रधान लक्ष्य मनुष्य मात्र को नैतिक उपदेश एवं शिक्षा देने का होता है, जिससे वे अपने व्यावहारिक जीवन में सदा सफल रहें, कहीं भी वे निराशा अथवा अपमान का अनुभव न करें, परन्तु लोककथाओं के चित्रण में कवि का ध्यान उन्हें अधिक आकर्षक एवं सरस बनाने का रहता है। (ii) नीति कथाओं के पात्र तिर्यक् जाति में पशु-पक्षी - शेर, बन्दर, चूहा, तोता, मैना, कौआ आदि होते हैं, परन्तु लोककथाओं के पात्र अधिकतर मनुष्य जाति के ही होते हैं, कभी-कभी एकाग्र स्थल पर पात्र रूप में पशु-पक्षी दृष्टिगोचर हो जाता है।

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