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विद्वानों से निवेदन यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि आपकी प्रतिष्ठित त्रैमासिक शोध-पत्रिका 'श्रमण' (सन् 1949 से प्रारम्भ) अपनी गुणवत्तापूर्ण सामग्री एवं समयानुकूल प्रकाशन के कारण विद्वत् समुदाय द्वारा जैन विद्या के शीर्षथ पत्रिकाओं में परिगणित की जाने लगी है, जिसका प्रमाण है पाठकों की टिप्पणियाँ एवं मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित समाचार पत्रों में जैन विद्या के प्रमुख लेखों के स्तम्भ में श्रमण में प्रकाशित लेखों के नाम का बाहुल्य। भविष्य में इसके प्रभाव एवं शोधसामग्री के वर्धन हेतु 2013 में इसके प्रत्येक अंक को
अब विषय-विशेष पर आधारित(Particular Theme based) करने का निर्णय प्रकाशन मण्डल द्वारा लिया गया है। ये चार अंक और उनसे सम्बन्धित विषय निम्न हैंक्र०सं० अंक
विषय 1. जनवरी-मार्च, 13
जैन इतिहास, संस्कृति, कला एवं स्थापत्य 2. अप्रैल-जून, 13
जैन आगम एवं दर्शन 3. जुलाई-सितम्बर, 13
जैन-नीतिशास्त्र एवं कर्म-सिद्धान्त 4. अक्टूबर-दिसम्बर, 13 जैन-धर्मदर्शन एवं इसके सिद्धान्तों की वर्तमान प्रासंगिकता एतदर्थ विद्वज्जनों से अनुरोध है कि आप उपरोक्त विषयों में से किसी भी विषय पर अपने शोधालेख (हिन्दी या अंग्रेजी) में भेज कर हमारे इस कार्य को गति प्रदान करें। इस क्रम में नवीन शोधालेखों के साथ-साथ पूर्व प्रकाशित लेखों के सन्दर्भ में आपकी निष्पक्ष टिप्पणियाँ भी आमन्त्रित हैं जिन्हें आगामी अंकों में, 'पाठकों की दृष्टि में' नामक स्तम्भ में प्रकाशित किया जायेगा। अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि अपने इस सहयोग को बनाये रखें एवं अपने सुझावों एवं सत्प्रयासों द्वारा हमें इस कार्य की पूर्णता के लिए सम्बल प्रदान करते रहें। शोधपत्र प्रेषित करते समय कृपया निम्न तथ्यों पर विशेष ध्यान दें1. प्रथम अंक के लेख हमें 15-12-12 तक, द्वितीय अंक के लेख 15-03-13 तक, तृतीय अंक के लेख 15-06-13 तक और चतुर्थ अंक के लेख 15-09-13 तक हमें प्राप्त हो जायें। 2.लेखों के सन्दर्भ देते समय कृपया पुस्तक, लेखक, प्रकाशक, प्रकाशन-स्थल, संस्करण एवं वर्ष तथा पृष्ठ संख्या का अवश्य उल्लेख करें। 3.लेख के साथ एक घोषणा पत्र अवश्य संलग्न करें कि आपका यह लेख मौलिक है एवं अन्यत्र प्रकाशित नहीं है। नोट :- आप अपने पत्र या टिप्पणियों की soft copies हमें rahulsingh@pv-edu.in पर या ruchirai@pv-edu.in पर भेजने की कृपा करें।