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आ पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार :71 दिनांक 7 अक्टूबर 2012 को इस पन्द्रह दिवसीय कार्यशाला का समापन समारोह सम्पन्न हुआ। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पूर्व निदेशक प्रो0 सुदर्शन लाल जैन ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। डॉ0 श्रीप्रकाश पाण्डेय ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यशाला संयोजक डॉ0 नवीन कुमार श्रीवास्तव ने कार्यवाही सारांशिका प्रस्तुत करते हुए कार्यशाला में दिये गये व्याख्यानों के मुख्य बिन्दुओं को रेखांकित किया। डॉ. राहुल कुमार सिंह ने प्रश्नोत्तरी की भूमिका पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र एवं पत्र वाचन तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
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September
October 2012
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो0 कमलेश दत्त त्रिपाठी, एमिरेटस प्रोफेसर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि विदेशों में संस्कृत का ज्ञान अठारहवीं शताब्दी में हुआ। परिणामस्वरूप शोध एवं अध्ययन के क्षेत्र में नवीन प्रवृत्तियों का उदय हुआ। संस्कृत के ज्ञान के कारण तुलनात्मक भाषाविज्ञान, तुलनात्मक साहित्य, तुलनात्मक धर्म-दर्शन एवं तुलनात्मक पौराणिक कथाओं का अध्ययन विद्वानों द्वारा आरम्भ हुआ। भारतीय संस्कृति के किसी भी क्षेत्र में गम्भीर अध्ययन हेतु संस्कृत के साथ प्राकृत, पालि, अपभ्रंश का ज्ञान होना आवश्यक है। आज तक मूल ग्रन्थों के सम्पादन, अनुवाद और शोध पर जितना कार्य हुआ है उससे अधिक कार्य करने को आवश्यकता है। उन्होंने युवा पीढ़ी से प्राच्य भाषाओं को सीखने का आह्वान किया। धर्म-दर्शन के अध्ययन का