Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 130
________________ जैन जगत् : १२३ e neglect the Prakrit language and pursue their career in this field. Finally, on behalf of Lal Bahadur Rashtriya Sanskrit Vidyapeeth he gave an offer to BLII to join hands for signing an MOU for conducting advance courses for the study of Prakrit language & literature in Delhi. शोक-समाचार डॉ. धर्मचन्द जैन को मातृशोक अलीगढ़ (टोंक)- दृढ़धर्मिष्ठा सुश्राविका एवं डॉ. धर्मचन्द जैन (एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर की मताश्री श्रीमती कपूरीदेवी जी, धर्मपत्नी स्वाध्यायी सुश्रावक स्व. श्री सोभागमल जी जैन का ७२ वर्ष की आयु में २६ अप्रैल २००६ को प्रातः सौरसी एवं प्रकाशन के प्रत्याख्यान में सहज समाधि में आकस्मिक स्वर्गगमन हो गया। नियमित रूप से सामायिक साधना करने वाली सुश्राविका के बचपन से रात्रिभोजन का त्याग था। आप कच्चे पानी के त्याग एवं लीलोती की मर्यादा के नियम का लगभग २० वर्षों से पालन कर रही थीं। प्रत्येक श्रावण एवं भाद्रपद में एकान्तर उपवास करती थीं तथा नौदिवसीय तपस्या करने पर भी प्रतिदिन १३ द्रव्यों से अधिक का सेवन नहीं करती थी। तप-त्याग एवं व्रत नियमों के साथ सतियों के चातुर्मास में रात्रि-संवर स्थानक में ही करती थीं। सरलता, सहिष्णुता, सन्त-सती-सेवा एवं अतिथि सेवा की वे आदर्श मूर्ति थीं। अपने पीछे आप 'जिनवाणी' के सम्पादक डॉ. धर्मचन्द जैन एवं उनके भ्राता श्री ऋषभजी, श्री टीकम जी एवं श्री विनोद जी जैन का भरा पुरा परिवार छोड़कर गई हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार निर्वेद, सन्तोषभाव से दिवंगत पुण्यात्मा के श्री चरणों में अपनी श्रद्धाञ्जजलि अर्पित करते हुए डॉ. जैन के शोक-सन्तप्त परिवार से प्रति हार्दिक संवेदना प्रकट करता है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश सिंह को मातृशोक ८ जून, वाराणसी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ स्थित शतावधानी रत्नचन्द पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश सिंह की माताश्री श्रीमती लीलावती देवी का एक संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। श्रीमती लीलावती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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