Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ संस्कृत छाया : अत्रान्तरे पुनरपि गगने वाक् समुत्थिता एषा । मा कुरु बहुविकल्पान् मम वचनं तावनिःशृणु।।१८६।। गुजराती अर्थ :- एटलीवार मां फरी पण आकाशवाणी थई “अहीं घणा विकल्पोने को नही पण मारा वचन सांभळो?" हिन्दी अनुवाद :- इतनी देर में पुन: आकाशवाणी हुई “यहाँ बहुत विकल्प मत करो मैं जो कह रहा हूँ, सुनो!" गाहा : गंतूणं सोमलया साहउ जणयस्स एरिसं वयणं। भणिया बहु-प्पगारं भणइ तओ कणगमालेवं।।१८७।। संस्कृत छाया : गत्वा सोमलता कथयतु जनकायैतादृशं वचनम् ।। भणिता बहुप्रकारं भणति ततः कनकमाला एवम्।।१८७।। गुजराती अर्थ :- सोमलता! तुं अहींथी जईने तेना पिताने आ प्रमाणे कहे. घणा प्रकारे समजावायेली कनकमालाए पछी आ प्रमाणे कहे छे। हिन्दी अनुवाद :- सोमलता! तूं यहाँ से जाकर उनके पिताजी को इस प्रकार समाचार दे कि बहुत समजाने के बाद कनकमाला इस प्रकार कह रही है। गाहा : . पितानी वात मान्य जं चेव कुणइ ताओ तं चेव मल्हा बहु-मयं सव्वं । जह होइ सुंदरं इह तायस्सवि कीरइ तयंति ।।१८८।। संस्कृत छाया : यश्चैवं करोति तातः तं चैव मम बहुमतं सर्वम् | यथा भवति सुन्दरं इह तातस्यापि क्रियते तदिति।।१८८।। गुजराती अर्थ :- पिताजी जे करशे ते सर्व मने मान्य छे जे करवाथी पिताजीनु सुन्दर थाय तेम करवु। हिन्दी अनुवाद :- पिताजी जो भी करेंगे वो मुझे मान्य है। पिताजी को जो अच्छा लगे वैसा करें। गाहा : तत्तो अविगप्पं से वरणमाइं पडिच्छियव्वंति । एवं हि कए कमसो होही इट्टत्थ-संपत्ती ।।१८९।। 197 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226