Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 207
________________ संस्कृत छाया : ततश्च चित्रमाला तद्वचनं कथयति निज-दयितायै। तत्श्रुत्वा अमितगति-हर्षितवदन इदं भणति ।।१९८।। गुजराती अर्थ :- हवे माता चित्रमालाप्ट ते वचन पोताना पतिने कहया अने ते सांभळीने अति प्रसन्न थयेल राजा अमितगति आ प्रमाणे बोलवा लाग्या। हिन्दी अनुवाद :- फिर माता चित्रमाला ने वही वचन अपने पतिदेव से कहा। यह सुनकर अति प्रसन्न हुए राजा अमितगति इस प्रकार कहने लगे। गाहा : सुंदरमणुट्टियं हंदि! मज्झ धूयाए जणय-भत्ताए। दक्खिन्न-वयण-विन्नाण-पगरिसो दंसिओ एवं ।।१९९।। संस्कृत छाया : सुंदरमनुष्ठितं हंदि! मम दुहितुः जनकभक्तायाः। दाक्षिण्य-वचन-विज्ञान-प्रकर्षों दर्शितश्चैवम्।।१९९|| गुजराती अर्थ :- पितानी भक्ति थी मारी पुत्रिए। अहो! अतिसुदंर कर्यु - मारी पुत्रीए दाक्षिण्ययुक्त वचनना ज्ञाननो आ प्रकर्ष बताव्यो छे! निश्चे संतति आवी विनययक्त ज होवी जोइए। हिन्दी अनुवाद :- मेरी पुत्री ने पिताजी की भक्ति से सुंदर कार्य किया है। पुत्री ने दाक्षिण्य युक्त वचन द्वारा अपने ज्ञान का प्रकर्ष दिखलाया है। गाहा : तत्तो पभाय-समए रायामच्चेहिं वरणयं तीसे। महया विच्छड्डेणं विहियं कय-जणय-आणंदं।।२००।। संस्कृत छाया : ततः प्रभातसमये राजा-अमात्यैः वरणकं तस्याः। महता विच्छन विहितं कृत-जनकानन्दम् ।।२००।। गुजराती अर्थ :- त्यारपछी प्रभात समये राजा वडे अमात्यो सहित मोटा महोत्सव पूर्वक पिताने आनन्द आपनार एवो तेणीनो लग्न महोत्सव प्रारंभ करायो। हिन्दी अनुवाद :- उसके पश्चात् प्रात: काल में राजा के मन्त्री द्वारा पिताजी को आनन्द देनेवाला बड़े ठाट से उनका लग्न महोत्सव प्रारम्भ किया गया। 201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226