Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 202
________________ संस्कृत छाया : ततश्च मया तस्यै कथितः सर्वोऽपि पूर्ववृत्तान्तः। भणिता च हे पुत्रि! सम्प्रति किं तव प्रतिभासते कर्तुम्?।।१८३।। गुजराती अर्थ :- अने त्यारपछी मे तेने बधो ज वृत्तान्त कहयो अने कहयुं - हे पुत्री! अत्यारे तने करवा जेवु शुं उचित लागे छे? हिन्दी अनुवाद :- बाद में मैंने भी सभी वृत्तान्त उसको सुनाया, और पूछा हे पुत्री! फिलहाल तुझे क्या करना उचित लगता है? गाहा : सोमलता ने कहेवु अह तीए वज्जरियं लज्जं मोत्तुं भणामि एयं तु। नवि मज्झ करे लग्गइ अन्नो पुरिसो इहं जम्मे।।१८४।। संस्कृत छाया : अथ तया व्याहृतं लज्जां मुक्त्वा भणामि एतत्तु। नापि मम करे लगति अन्यः पुरुष इह जन्मनि। १८४।। गुजराती अर्थ :- तेणीए पण लज्जा मूकीने जे करा, ते कहु छु 'आ जन्ममां मारा हाथ ऊपर कोई पण अन्य पुरुषनो हाथ नही लागे।' हिन्दी अनुवाद :- तब कनकमाला ने भी लज्जा छोड़कर जो कहा, वह मैं कहती हूँ, 'इस जन्म में मेरे हाथ पर अन्य किसी पुरुष का हाथ नही होगा।' गाहा : हसिऊण मए भणियं देवय-वयणाउ सिद्धमेयंति। किंतु कह तुज्झ जणओ छुट्टिस्सइ गंधवाहणओ?।।१८५।। संस्कृत छाया : हसित्वा मया भणितं देवता-वचनात् सिद्ध-मेतदिति। किन्तु कथं तव जनकः छुटिष्यति गन्धवाहनात्? ||१८५।। गुजराती अर्थ :- त्यारे मे हसीने कहयु, देवताना वचनथी तारो मनोरथ सिद्ध ज छे परंतु तारा पिता गन्धवाहनथी केवी रीते छुटशे? हिन्दी अनुवाद :- तब मैंने हंसकर कहा, देवता के वचन से तेरा मनोरथ सफल ही है किन्तु गन्धवाहन से तेरे पिता की मुक्ति कैसे होगी? गाहा : एत्यंतरम्मि पुणरवि गयणे वाया समुट्ठिया एसा । मा! कुणह बहु-विगप्पे मह वयणं ताव निसुणेह ।।१८६।। 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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