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१३० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६ ने हिन्दी साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भैया भगवती दास , १८वीं शताब्दी के प्रतिनिधि कवि थे। किन्तु ऐसे कवि का व्यक्तित्व और कृतित्व अध्ययन के अभाव में शास्त्र भण्डारों में ही सिमट कर रह गया था। भैया भगवती दास की कृतियों का नित्यप्रति पाठ उनके श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता था किन्तु वे उन रचनाओं के महत्त्व से अब तक अपरिचित थे। ऐसे महत्त्वपूर्ण जैन हिन्दी विद्वान की कृतियों को उजागर करने का प्रथम प्रयास डॉ. उषा जैन ने किया है वे निश्चय ही बधाई की पात्र हैं।
ब्रह्मविलास में भैया भगवती दास की काव्य रचनाओं का अपूर्व संग्रह है। श्रीमती जैन ने इस संग्रह को हिन्दी साहित्य में इसका उचित स्थान दिलाने का वीणा उठाया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में श्रीमती जैन ने ब्रह्म-विलास का दार्शनिक अवलोकन करते हुए अनेक पद्यों को भी अपने इस ग्रंथ में समावेश किया है जिससे कवि की सहृदयता, काव्यात्मकता सहज ही प्रखर होती है। इसकी भाषा गम्भीर होते हुए भी गढ़ विषयों को सरलता और सहजता से पाठक वर्ग के सामने रखने में सक्षम है। विद्वान लेखिका से यह अपेक्षा है कि वह अपना यह प्रयास कुछ अन्य भी ऐसे व्यक्तित्व और कृतित्व को उजागर करने में जारी रखेंगी. जो अभी तक अनाम हैं। पुस्तक की बाह्याकृति आकर्षक व मुद्रण स्पष्ट है।
डा० शारदा सिंह
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