Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 197
________________ गुजराती अर्थ :- हे पिता! पहेला प्रणयपरवश मारा वड़े आपनो जे कोई अपराध थयो होय ते सर्वनी मने क्षमा आपजो, हुं हवे परलोक तरफ प्रयाण करू छु! हिन्दी अनुवाद :- हे पिता! पहले प्रणयवश मेरे द्वारा आप का जो कुछ भी अपराधकिया गया हो उन सभी के लिए मुझे क्षमा करना, फिलहाल मैं परलोक की ओर प्रयाण करती हूँ। गाहा : जणणी-समहिय-नेहे! सोमलए! खम किलेसिया जं सि । सुसिणिद्ध-सही-संदोह! खमसु जं किंचि अवरद्धं ।। १६९।। संस्कृत छाया :जननी-समधिक-स्नेहे! सोमलते! क्षमस्व क्लेशिता यदसि। सुस्निग्ध-सखी-संदोह! क्षमस्व यत्किञ्चिदपराद्धम् ||१६९।। गुजराती अर्थ :- माता समान अधिक स्नेहाळ सोमलते! तुं पण मारा अपराधोनी क्षमा आपजे, उत्तमस्नेहने धारण करती है! सखीओ! तमे बधा पण मारी क्षतिनी क्षमा करजो! हिन्दी अनुवाद : - माता तुल्य, अधिक स्नेहवती! सोमलते! तूं भी मेरे अपराधों की . क्षमा करना, स्निग्धस्नेहवाली सखियाँ! तुम भी मुझे क्षमा करना। गाहा : खण-मित्त-दिट्ट! वल्लह! हिययन्भंतर-पविट्ठ निसुणेसु। पत्थेमि किंचि सामिय! पाण-च्चायं करेमाणी ।।१७०।। संस्कृत छाया :- . क्षणमात्रदृष्ट! हे वल्लभ! हृदयाभ्यन्तर प्रविष्ट! निश्रुणु! । प्रार्थयामि किंचिद् हे स्वामिन्! प्राणत्यागं कुर्वन्ती ।।१७०।। गुजराती अर्थ :- एक क्षणमात्र जोयेला छता हृदयनी अंदर प्रवेशेला हे वल्लभ! हे स्वामिन् । प्राण त्याग करती एवी हुं प्रार्थना करूं छु ते तमे सांभळो। हिन्दी अनुवाद :- क्षणिकमात्र देखने पर भी हृदय में प्रविष्ट हे वल्लभ! हे स्वामिन्! प्राण-त्याग करते हुए मेरी प्रार्थना को आप सुनिए! गाहा : तुह संगम-रहियाए एसो जम्मो हु ताव वोलीणो। अन्न- भवे पुण सामिय। तं चिय मह वल्लहो हुज्जा।।१७१।। 191 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226