Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 199
________________ संस्कृत छाया : मन्ये न किंचिद् लब्धं हतविधिना मरणकारणमन्यत्। मम तेन कारणेन त्वया सह दर्शनं विहितम् || १७४।। गुजराती अर्थ :- हुं मानु छु के दुष्ट भाग्यवड़े मारा मरण माटे बीजु कोई कारण प्राप्त न करायु, जेथी तारी साथे मारू दर्शन करावायु। हिन्दी अनुवाद :- मैं मानती हूँ कि दुर्भाग्य द्वारा मेरे मरण के लिए अतिरिक्त कोई भी कारण प्राप्त नहीं किया गया, जिससे आपका दर्शन मुझे कराया। गाहा : वण-देवयाओ! निसुणह तुम्ह पसायाओ अन्न-जम्मेवि। सो खण-दिट्ठो लोगो दइओ मह होज्ज, नन्नोत्ति ।। १७५।। संस्कृत छाया : हे वनदेवता! निःशृणुत युष्माकं प्रसादादन्य-जन्मन्यपि। स क्षण-दृष्टो लोको दयितो मम भवतु नान्य इति ।।१७५।। गुजराती अर्थ :- हे वनदेवता! सांभलो! आपनी कृपाथी बीजा जन्ममा पण ते क्षण मात्र जोवायेलो पुरुष मारो पति थाय, बीजो कोई नहीं। हिन्दी अनुवाद :- हे वनदेवता!सुनिए! आपकी कृपा से अन्य जन्म में भी उस क्षण - में दृष्टिपात हुआ पुरुष ही मेरा पति बने अन्य कोई नहीं। गाहा :- आकाश वाणी एवं भणिउं तीए मुक्को अप्या अहोमुहो झत्ति। . एत्यंतरम्मि गयणे समुट्ठिया एरिसा वाया ।।१७६।। संस्कृत छाया : एवं भणित्वा तया मुक्त आत्मा अधोमुखो झटिति। अत्रान्तरे गगने समुत्थिता ईदृशी वाग् ।।१७६।। गुजराती अर्थ :- ए प्रमाणे कहीने तेना वड़े जल्दी थी पोतानो देह अधोमुख करायो ते समये ज आ प्रमाणे आकाशवाणी थई! हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार बोलकर उसने जल्दी से अपने देह को अधोमुख किया, उसी समय इस प्रकार आकाशवाणी हुई। गाहा : मा मा साहसमेयं आयर भहे! समुच्छुगा होउं। सो चेव तुज्झ भत्ता होही नणु चित्तवेगोत्ति ।।१७७।। 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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