Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 164
________________ हिन्दी अनुवाद :- शुक्लध्यान से दग्ध कर्मवनवाले, भवबंधन के नाशक, जन्म, जरा, मरण के दुःखहारक, हे जीव दयावर! आप की जय हो, जय हो। गाहा : उप्पन्न-विमल-केवल-उवलद्ध-समत्थ-णेय-सब्भाव!। सासय सिव-सुह-साहण! पत्त-अहक्खाय-चारित्त!।।७०।। संस्कृत छाया : उत्पन्न-विमल-केवलोपलब्ध-समस्त-ज्ञेय-सद्भावः । । शाश्वत-शिव-सुखसाधन! प्राप्त यथाख्यात-चारित्र! ||७०।। गुजराती अर्थ :- उत्पन्न थयेला विशुद्ध केवलज्ञानवड़े समस्त होय भावने जाणनार, शाश्वत-शिव-सुखना साधक! यथाख्यात चारित्रने पामेल - हिन्दी अनुवाद :- प्रगटित विशुद्ध केवलज्ञान द्वारा समस्त ज्ञेय पदार्थों को जाननेवाले! शाश्वत शिव-सुख साधक! यथाख्यात चारित्रवान्! - गाहा : भयवं! अणाइ-निहणे परिन्भमंताण भव-समुद्दम्मि। है दाउं हत्थालंबं अम्ह समुत्तारणं कुणसु ।।७१।। संस्कृत छाया : हे भगवन्! अनादि-निधने परिभ्रमतां भव-समुद्रे । दत्त्वा हस्तालम्बं अस्माकं समुत्तारणं कुरु ।।७१।। गुजराती अर्थ :- हे भगवन्! अनादि अनंत संसार सागरमां परिभ्रमण करता अमने हस्तावलंबन आपीने आप आ संसारथी तारो! हिन्दी अनुवाद :- हे भगवन्! अनादि अनंत संसार-सागर में परिभ्रमित हमको हस्तावलंबन देकर आप इस संसार से हमारा उद्धार करो। गाहा : एवं थुणिऊण मुणिं मुणि-मुह-कमल-निहिय-मण-नयणो। उवविठ्ठो धरणिए नासन्ने नाइदूरम्मि ॥७२।। संस्कृत छाया : एवं स्तुत्वा मुनिं मुनि-मुख-कमल-निहित-मनोनयनः | उपविष्टो धरण्यां नासन्ने नातिदूरे ।।७२।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे मुनिनी स्तुति कीने मुनि ना मुखकमल उपर स्थापन करेला मन अने नयनवाळा राजा अतिदूर अने नजीक पण नही एवी पृथ्वीतल ऊपर बेठा। 158 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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