Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 189
________________ हिन्दी अनुवाद :- गाढ़ वृक्ष से व्याप्त गृहोद्यान में जाकर उन्हें खोजने के लिए चारो ओर घूमती थी उतने में - गाहा : घण-पत्तल-कयली-हर-मणोहरे तत्थ एग-देसम्मि। पत्तल-तमाल-तरु-तल-हेट-निविट्ठा मए दिट्ठा।।१४४।। संस्कृत छाया : घन-पत्रल-कदलीगृह-मनोहरे तत्र एकदेशे। पत्रल-तमाल-तरुतलाधो-निविष्टा मया दृष्टा ।।१४४।। गुजराती अर्थ :- गाढ़ पत्रवाळा कदलिगृहथी मनोहर त्यांना एकदेशमा पत्रोथी छवायेला तमालवृक्षनी नीचे बेठेली में जोई। हिन्दी अनुवाद :- गाढ़ पत्रवाले कदलीगृह से मनोहर वहाँ के एकदेश में पत्रों से व्याप्त तमाल वृक्ष के नीचे बैठी हुई मैंने देखी। गाहा : किं-किंपि चिंतयंती गलंत-थूलंसु-सित्त-गंड-यला। अणहुंत-मण-समीहिय-गुरु-दुक्खा कणगमालत्ति।।१४५।। संस्कृत छाया : किं किमपि चिन्तयंति गलत्स्थूला सिक्त-गंडस्थला। अभवन्मनःसमीहित-गुरूदुःखा कनकमालेति।।१४५।। गुजराती अर्थ :- ते प्रसंगे कांई पण विचार करती, झरता मोटा आंसु वड़े भींजायेला गण्डस्थलवाळी मनोवंछित न थवाथी भारे दुःखथी दुःखित कनकमाला देखाती हती! हिन्दी अनुवाद :- उस वख्त कुछ-कुछ सोचती हुई, बड़े-बड़े आंसू से प्लावित हुए कपोलवाली मनोवांछित इच्छा पूर्ण न होने से भारी दुःख से दुःखित दिखाई देती थी। गाहा : तत्तो विचिंतियं मे किं मन्ने निय-गिहं पमोत्तूण। एगागिणी हु एसा समागया एत्थ उज्जाणे? ।।१४६।। युग्मम् ।। संस्कृत छाया : ततो विचिन्तितं मया किं मन्ये निजगृहं प्रमुच्य। एकाकिनी खलु एषा समागता अत्रोद्याने? ||१४६।। युग्मम् ।। गुजराती अर्थ :- त्यारे मे विचार्यु - के आ पोतानु घर छोडी ने अहीं आ बगीचामां एकली केम आवी छ। 183 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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