Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 193
________________ संस्कृत छाया : यस्योपरि तवेच्छा दातव्या तस्मै त्वं मया हे पुत्रि! इति निज-वचनं तातेन साम्प्रतं अन्यथा विहितम् ।।१५६।। गुजराती अर्थ :- हे पुत्री! जेना उपर तारो राग हशे तेने ज आपीश ए प्रमाणे पिता वड़े जे कहेवायु ते पण अत्यारे अन्यथा करायु। हिन्दी अनुवाद :- हे पुत्री! जिसके ऊपर तेरा राग होगा उसी को मैं दूंगा इस प्रकार पिताजी द्वारा जो कहा गया था वह भी फिलहाल अन्यथा हुआ। गाहा :'विन्नाय-मह-सरूवो ओ अन्नहा जइ करेइ ताओवि। मद वंछिय-सम्प्राप्त्याः संभवस्ततः ता कहं होउ?।।१५७।। संस्कृत छाया : विज्ञात-मत्स्वरूप ओ! अन्यथा यदि करोति तातोऽपि। मद्वांछित-सम्प्राप्त्याः संभवस्ततः कथं भवेत? ||१५७।। गुजराती अर्थ :- मारा स्वरूप ने जाणेला पिता पण जो अत्यारे अन्यथा कटे छे तो पछी मारा मनोवांछित मिलनो संभव केवी रीते थाय? हिन्दी अनुवाद :- मेरे स्वरूप से अवगत पिताजी भी फिलहाल अन्यथा करते हैं तो फिर मेरा मनोवांछित मिलन का संभव कैसे होगा? गाहा : एवं वियाणिऊणवि हियय! तुमं कास मुंचसि न आसं । तज्जण-संगम-विसयं जेणज्जवि जीवियं धरसि? ।।१५८।। संस्कृत छाया : एवं विज्ञायापि हे हृदय! त्वं कस्माद् मुञ्चसि नाशाम्। तज्जन-सङ्गम-विषयं येनाद्यापि जीवितं धत्से? ।।१५८|| गुजराती अर्थ :- हे हृदय! आ प्रमाणे तुं जाणे छे, छतां पण आशाने केम छोडतुं नथी? हजु पण इष्टजनना समागममां उत्कंठित थयेलानी जेम जीवित धारण करे छे। हिन्दी अनुवाद :- हे हृदय! इस प्रकार तूं जानने पर भी आशा को क्यं नहीं छोड़ता है? अभी भी इष्टंजन के समागम में उत्कंठित हुए की तरह तूं जीवन को धारण करता है। गाहा : अहवा न कोवि दोसो पहु-परवस-चिट्ठियस्स तायस्स । सुम्मइ जणम्मि पयर्ड कट्ठो खलु भिच्च-भावोत्ति ।।१५९।। _187 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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