Book Title: Sramana 2001 04 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 3
________________ 9. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. हिन्दी खण्ड द्रव्य, गुण और पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध (सिद्धसेन दिवाकरकृत 'सन्मतिप्रकरण' के विशेष सन्दर्भ में) श्रमण विषय-सूची अनेकान्तवाद और उसकी समसामयिकता - डॉ० अजय कुमार वैशाली - आचार्य विजयेन्द्रसूरि अजय कुमार सिन्हा डॉ० अशोक कुमार सिंह महावीर के जन्मस्थान पर नया प्रकाश सरस्वती जैनधर्म के चतुर्विध संघों का पारस्परिक सहदायित्त्व खरतरगच्छ - कीर्तिरत्नसूरिशाखा का संक्षिप्त इतिहास देवलोक और तिर्यञ्च में नाग जैनधर्म, संस्कृति और कला के विकास में गंग चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों का योगदान - प्रो० भागचन्द्र जैन १०. भारतीय भाषाओं का प्रथम व्यंग्य उपन्यास - धूर्त्ताख्यान ૧૪. ગુજરાતી સાહિત્યમાં જૈન ભક્તિકાવ્યો 17. Samyakdarshan १८. विद्यापीठ के प्रांगण में १९. जैन जगत् २०. साहित्य-सत्कार डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय Jain Education International ११. आधुनिक विश्व में अहिंसा की प्रासंगिकता - दुलीचन्द जैन १२. शोधप्रबन्धसार १३. शोधप्रबन्धसार डॉ० अरुण प्रताप सिंह - - ગુજરાતી ખંડ डॉ० शिवप्रसाद श्री भंवरलाल नाहटा - - प्रो० श्यामसुन्दर घोष १२९-१३३ १३४-१४३ अंग्रेजी खण्ड 15. The Impact of Nyāya and Vaiseșika School of Jaina Prof. Sagarmal Jain 16. Rightful exposition of Jainism in the West Philosophy Dr. N.L. Jain J.P. Jain 'Sadhak" પન્નાલાલ રસિકલાલ શાહ १-१५ १६-१९ २०-४९ ५०-५४ ५५-६२ ६३-७३ For Private & Personal Use Only ७४-८८ ८९-११२ १४४-१४७ श्रीमती शारदा सिंह श्रीमती किरण श्रीवास्तव १४८ - १५१ ११३-१२८ 942-993 164-169 170-179 180-184 १८५-१८६ १८७-२०७ २०८-२१८ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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