Book Title: Sramana 1994 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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गो. सागरमल जैन
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हैं, एवं ते जणेणं सुकम्मनिवत्तितसन्ना बंभणा( माहणा) जाया, जे पुण अणस्सिया असिप्पिणो ते वयख(क) लासुइबहिकआ तेसु तेसु पओयणेसु सोयमाणा हिंसाचोरियादिसु सज्जमाणा सोगद्रोहणसीला सुद्दा संवुत्ता, एवं तावं चत्तारिवि वण्णा ठाविता, सेसाओ संजोएणं, तत्थ 'संजोए सोलसयं गाहा (20-8) एतेसिं चेव च उण्हं वण्णाणं पुव्वाणुपुव्वीए अणंतरसंजोएणं अण्णे तिण्णि वण्णा भवंति, तत्थ ‘फ्यती चउक्कयाणंतरे गाहा (21-8) पगती णाम बंभखत्तियवइससुद्दा चउरो वण्णा। इदाणिं अंतरेण-बंभणेणं खत्तियाणीए जाओ सो उत्तमखत्तिओ वा सुद्धखत्तिओ वा अहवा संकरखत्तिओ पंचमो वण्णो, जो पुण खत्तिएणं वइस्सीए जाओ एसो उत्तमवइस्सो वा सुद्धवइस्सो वा संकरवइस्सो वा छट्ठो वण्णो, जो वइस्सेण सुद्दीए जातो सो उत्तमसुद्दो वा (सुद्धसुद्दो) वा संकरसुद्दो वा सत्तमो वण्णो। इदाणिं वण्णेणं वण्णेहिं वा अंतरितो अणुलोमओ पडिलोमतो य अंतरा सत्त वण्णंतरया भवंति, जे अंतरिया ते एगंतरिया दुअंतरिया भवंति। चत्तारि गाहाओ पढियव्वाओ (22, 23,24,25-8) तत्थ ताव बंभणेणं वइस्सीए जाओ अंबट्ठोत्ति वुच्चइ एसो अट्ठमो वण्णो, खत्तिएणं सुद्दीए जातो उग्गोत्ति वुच्चइ एसो नवमो वण्णो, बंभणेण सुद्दीए निसातोत्ति वुच्चइ, कित्तिपारासवोत्ति, तिणि गया, दसमो वण्णो। इदाणिं पडिलोमा भण्णंति-सुदेण वइस्सीए जाओ अउगवुत्ति भण्णइ, एक्कारसमो वण्णो, वइस्सेणं खत्तियाणीए जाओ मागहोत्ति भण्णइ, दुवालसमो, खत्तिएणं बंभणीए जाओ सूओत्ति भण्णति, तेरसो वण्णो सुदेण खत्तियाणीए जाओ खत्तिओत्ति भण्णइ, चोद्दसमो, वइस्सेण बंभणीए जाओ वैदेहोत्ति भण्णति, पन्नरसमो वण्णो, सुदेण बंभणीए जाओ चंडालेत्ति पवुच्चइ, सोलसमो वण्णो, एतवूतिरित्ताजेते बिजाते ते वुच्चंति -- उम्गेण खत्तियाणिए सोवागेत्ति वुच्चइ, वैदेहेणं खत्तीए जाओ वेणवुत्ति वुच्चइ, निसाएणं अंबटीए जाओ बोक्कसोत्ति वुच्चइ, निसारण सुद्दीए जातो सोवि बोक्कसो, सुदेण निसादीए कुक्कुडओ, एवं
सच्छंदमतिविगप्पितं। 22. क्षत्रियाः शस्त्रजीवित्वं अनुभूय तदाभवन् ।
वैश्याश्च कृषिवाणिज्यपशुपाल्योपजीविताः ।। तेषां शुश्रूषणाच्छूद्रास्ते द्विधा कार्वकारवः ।। कारवो रजकाद्याः स्युस्ततोऽन्ये स्थरकारवः ।। कारवोऽपि मता या स्पृश्यास्पृश्यविकल्पतः । तत्रास्पृश्याः प्रजाबास्याः स्पृश्याः स्यु कतकादयः ।।
- आदि पुराण 16/184-186 23. ततो णो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं.-पंडए वीत्ते (चाहिये) कीवे ? 24. यदाह-- "बाले बुठे नपुंसे य, जड्डे कीवे य वाहिए।
तेणे रायावगारीय, उम्मत्ते य अंदसणे।। 1 ।। दासे दुढे(य), अणत्त जुंगिए इय। ओबद्धए य भयए, सेहनिप्फेडिया इय।।2।।
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