Book Title: Sramana 1994 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 129
________________ 255 भगवान महावीर की निर्वाण तिथि पर पुनर्विचार इसके अतिरिक्त षट्खण्डागम की "धवला" टीका में भी महावीर के निर्वाण के कितने वर्षों के पश्चात् शक (शालिवाहन शक) नृप हुआ, इस सम्बन्ध में तीन मतों का उल्लेख हुआ है11-- 1. वीरनिर्वाण के 605 वर्ष और पांच माह पश्चात् । 2. वीरनिर्वाण के 14793 वर्ष पश्चात्। 3. वीरनिर्वाण के 7995 वर्ष और पांच माह पश्चात्। श्वेताम्बर परम्परा में आगमों की देवर्द्धि की अन्तिमवाचना भगवान महावीर के निर्वाण के कितने समय पश्चात् हुई, इस सम्बन्ध में स्पष्टतया दो मता का उल्लेख मिलता है -- प्रथम मत उसे वीरनिर्वाण के 980 वर्ष पश्चात् मानता है, जबकि दूसरा मत उसे 993 वर्ष पश्चात् मानता है।12 श्वेताम्बर परम्परा में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहणकाल को लेकर भी दो मान्यतायें पायी जाती है। प्रथम परम्परागत मान्यता के अनुसार वे वीरनिर्वाण सम्वत् 215 में राज्यासीन हुए13 जबकि दूसरी हेमचन्द्र की मान्यता के अनुसार वे वीरनिर्वाण के 155 वर्ष पश्चात् राज्यासीन हुए। ५ हेमचन्द्र द्वारा प्रस्तुत यह दूसरी मान्यता महावीर के ई.पू. 527 में निर्वाण प्राप्त करने की अवधारणा में बाधक है। इस विवेचन से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में प्राचीनकाल में भी विवाद था। चूँकि महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में प्राचीन आन्तरिक साक्ष्य सबल नहीं थे, अतः पाश्चात्य विद्वानों ने बाह्य साक्ष्यों के आधार पर महावीर की निर्वाण तिथि को निश्चित करने का प्रयत्न किया, परिणाम स्वरूप महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में अनेक नये मत भी प्रकाश में आये। महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के मत इस प्रकार 1. हरमन जकोबी16 ई.पू. 477 इन्होंने हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व के उस उल्लेख को प्रामाणिक माना है कि चन्द्रगुप्त मौर्य वीरनिर्वाण के 155 वर्ष पश्चात् राज्यासीन हुआ और इसी आधार पर महावीर की निर्वाण तिथि निश्चित की। 2. जे. शारपेन्टियर17 ई.पू. 467 इन्होंने भी हेमचन्द्र को आधार बनाया है और चन्द्रगुप्त मौर्य के 155 वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण माना। 3. पं. ए. शान्तिराज शास्त्री18 ई.पू. 663 इन्होंने शक सम्वत् को विक्रम सम्वत् माना है और विक्रम सं. के 605 वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण माना। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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