Book Title: Sramana 1994 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 20
________________ डॉ. सागरमल जैन 18 प्रयत्न करें और सामाजिक जीवन में लोकमंगल की साधना करें। वैयक्तिक जीवन में वासनाओं से शुद्धि और सामाजिक जीवन में संघर्षों का निराकरण ये दो बातें ऐसी हैं जो महावीर के जीवन और दर्शन को हमारे सामने सम्यक् रूप से प्रस्तुत करती है । —— अनेकान्त का सिद्धान्त स्पष्ट रूप से इस बात को बताता है कि व्यक्ति अपने को आग्रह के घेरे में खड़ा न करें । सत्य का सूरज किसी एक के घर को प्रकाशित करेगा और दूसरे के घर को प्रकाशित नहीं करेगा, यह नहीं हो सकता। सूरज का काम है प्रकाश देना, जो भी अपना दरवाजा, अपनी छत, खुली रख सकेगा उसके यहाँ सूर्य का प्रकाश आ ही जायेगा। मित्रों ! यही स्थिति सत्य की है। यदि आपके मस्तिष्क का दरवाजा या खिड़की खुली है तो सत्य आपको आलोकित करेगा ही। लेकिन अगर हमने अपने आग्रहों के दरवाजों से अपनी मस्तिष्क की खिड़की को बन्द कर लिया है तो सत्य का प्रकाश प्रवेश नहीं करेगा। सत्य न तो मेरा होता है न पराया ही । वह सबका है और वह सर्वत्र हो सकता है। "मेरा सत्य" यह महावीर की दृष्टि में सबसे बड़ी भ्रान्ति है । आचार्य सिद्धसेन महावीर की स्तुति करते हुए कहते हैं कि - "भदं मिच्छादंसण समूह मइयस्स अमयसारस्स" हे प्रभु मिथ्या दर्शन समूह रूप अमृतमय आपके वचनों का कल्याण हो" । महावीर का अपना कुछ भी नहीं है-- जो सबका है वही उनका है और अगर हम दार्शनिक गहराई में न जायें और महावीर के दर्शन को जीवन-मूल्यों के साथ उसे जोड़ें तो हम पायेंगे कि वह वैयक्तिक जीवन में और सामाजिक जीवन में संघर्षों के निराकरण और समत्व की साधना की बात कहता है। "प्रश्नव्याकरणसूत्र " में अहिंसा के साठ नाम दिये हैं। जितने सारे सद्गुण हैं, वे समस्त सद्गुण अहिंसा में समाहित हैं। अहिंसा और अनेकान्त ये दो महावीर के धर्म चक्र के दो पहिये हैं, जिनके आधार पर धर्मरूपी रथ आगे बढ़ता है। Jain Education International मैं अब आपका अधिक समय नहीं लेना चाहूँगा और अन्त में यही कहना चाहूंगा कि अगर महावीर को समझना है तो उन्होंने वैयक्तिक जीवन में जो कठोर साधनाएँ की हैं उनकी ओर देखें, यह देखें कि वासनाओं और विकारों से कैसे लड़े ? यदि सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में उनके जीवन को समझना है तो उनकी वैचारिक उदारता और लोकमंगल की कामना को समझे और जीयें। सम्भवतः तभी हम महावीर को सम्यक् प्रकार से समझ सकेगें। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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