Book Title: Sramana 1994 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 83
________________ 81 अर्धमागधी आगमसाहित्य में समाधिमरण उपांग-साहित्य में मात्र औपपातिकसूत्र और रायपसेनीय में समाधिमरण ग्रहण करने वाले साधकों का उल्लेख है, किन्तु इनमें समाधिमरण की अवधारणा के सम्बन्ध में कोई विवेचन लब्ध नहीं है। इस सम्बन्ध में जो स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उन्हें अर्धमागधी मसाहित्य में प्रकीर्णक वर्ग के अर्न्तगत रखा गया है। प्रकीर्णकों में आतुरप्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, संस्तारक, आराधना-पताका, मरणविभक्ति, मरणसमाधि एवं विशुद्धि प्रमुख हैं। वर्तमान में जो मरणविभक्ति के नाम से प्रकीर्णक उपलब्ध हो रहा है समें मरणविभक्ति के अतिरिक्त मरणविशुद्धि, मरणसमाधि, संलेखनासूत्र, भक्तपरिज्ञा, तुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, आराधना प्रकीर्णक इन आठ ग्रन्थों को समाहित कर लिया या है। यद्यपि भक्तपरिज्ञा, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, संलेखनाश्रुत, संस्तारक, राधनापताका आदि ग्रन्थ स्वतन्त्र रूप से भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त तन्दुलवैचारिक मक प्रकीर्णक के अन्त में भी समाधिमरण का विस्तृत विवरण पाया जाता है। यद्यपि श्वेताम्बर परम्परा में समाधिमरण का विस्तृत विवरण एवं उपदेश देने वाले संस्कृत एवं प्राकृत के परवर्ती नचार्यों के अनेक ग्रन्थ हैं, किन्तु प्रस्तुत विवेचन में हम अपने को मात्र अर्धमागधी आगमसाहित्य क ही सीमित रखेंगे। शौरसेनी आगमसाहित्य में समाधिमरण का विवरण प्रस्तुत करने वाले लगम तुल्य जो ग्रन्थ हैं, उनमें मूलाचार एवं भगवतीआराधना नामक यापनीय परम्परा के दो न्य प्रसिद्ध हैं। इसमें मूलाचार समाधिमरण का विवरण प्रस्तुत करने के साथ ही मुनि आचार अन्य पक्षों पर भी प्रकाश डालता है। यद्यपि इसके संक्षिप्त प्रत्याख्यान एवं बृहत् प्रत्याख्यान शामक अध्यायों में आतुरमहाप्रत्याख्यान और महाप्रत्याख्यान नामक प्रकीर्णकों की शताधिक विवाएँ यथावत अपने शौरसेनी रूपान्तर में मिलती हैं। इसी प्रकार इसमें आवश्यकनियुक्ति की शताधिक गाथाएँ आवश्यक नियुक्ति के नाम से ही मिलती हैं। । जहाँ तक भगवतीआराधना का प्रश्न है उसमें भी अर्धमागधी आगमसाहित्य की विशेष रूप निसमाधिमरण से सम्बन्धित प्रकीर्णकों की शताधिक गाथाएँ उपलब्ध होती हैं। ज्ञातव्य है कि रावतीआराधना का मूल प्रतिपाद्य समाधिमरण है और यह ग्रन्थ अनेक दृष्टियों से मरणसमाधि, परनाम मरणविभक्ति और आराधना पताका से तुलनीय है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि राधनापताका नामक ग्रन्थ श्वेताम्बर आचार्य वीरभद्र के द्वारा भगवतीआराधना का अनुकरण करके लिखा गया है। यद्यपि यह अभी शोध का विषय है। इसमें भक्तपरिज्ञा, पिण्डनियुक्ति और आवश्यकनियुक्ति की भी सैकड़ों गाथाएँ उद्धृत की गयी हैं। इसमें कुल 1110 गाथाएएँ ik । इस प्रकार मरणविभक्ति और संस्तारक में समाधिमरण ग्रहण करने वालों के जो विशिष्ट उल्लेख उपलब्ध होते हैं वे ही उल्लेख भगवतीआराधना में भी बहुत कुछ समान रूप से मिलते है। आज मरणविभक्ति आदि प्रकीर्णकों का भगवतीआराधना से तुलनात्मक अध्ययन बहुत ही अपेक्षित है क्योंकि यह ग्रन्थ यापनीय परम्परा में निर्मित हुआ है और यापनीय अर्धमागधी आगमों को मान्य करते थे। अतः दोनों परम्पराओं में काफी कुछ आदान-प्रदान हुआ है। इसी प्रकार अपनीय परम्परा के ग्रन्थ बृहत्-कथाकोश में भी मरणविभक्ति भक्तपरिज्ञा, संस्तारक आदि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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