________________
101
जन कमासद्धान्त : एक विश्लषण
कर्म पूर्व होगा। द्रव्यकर्म एवं भावकर्म की इस आवधारणा के आधार पर जैन-कर्मसिद्धान्त अधिक
संगत बन गया है। जैन कर्मसिद्धान्त कर्म के भावात्मक पक्ष पर समुचित बल देते हुए भी । और चेतन के मध्य एक वास्तविक सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है। कर्म जड़-जगत् एवं
ना के मध्य एक योजक कड़ी है। जहाँ एक ओर सांख्य-योग दर्शन के अनुसार कर्म-पूर्णतः
प्रकृति से सम्बन्धित है। अतः उनके अनुसार वह प्रकृति ही है, जो बन्धन में आती है और स्त होती है। वहीं दूसरी ओर बौद्ध दर्शन के अनुसार कर्म संस्कार रूप है अतः वे चैत्तसिक । इसलिए उन्हें मानना पड़ा कि चेतना ही बन्धन एवं मुक्ति का कारण है। किन्तु जैन चारक इन एकांगी दृष्टिकोणों से सन्तुष्ट नहीं हो पाये। उनके अनुसार संसार का अर्थ है-- ड़ और चेतन का पारस्परिक बन्धन या उनकी पारस्परिक प्रभावशीलता तथा मुक्ति का अर्थ F- जड़ एवं चेतन की एक दूसरे को प्रभावित करने की सामर्थ्य का समाप्त हो जाना। तिक एवं अभौतिक पक्षों की पारस्परिक प्रभावकता
जिन दार्शनिकों ने चरम-सत्य के सम्बन्ध में अद्वैत की धारणा के स्थान पर द्वैत की मरणा स्वीकार की, उनके लिए यह प्रश्न बना रहा कि वे दोनों तत्त्व एक दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। अनेक विचारकों ने द्वैत को स्वीकारते हुए भी उनके पारस्परिक सम्बन्ध को अस्वीकार किया। किन्तु जगत् की व्याख्या इनके पारस्परिक सम्बन्ध के अभाव में सम्भव नहीं है। पश्चिम में यह समस्या देकार्त के सामने प्रस्तुत हुई थी। देकार्त ने इसका हल पारस्परिक प्रतिक्रियावाद के आधार पर किया भी, किन्तु स्पीनोजा उससे सन्तुष्ट नहीं हुए, इन्होंने प्रश्न उठाया कि दो स्वतन्त्र सत्ताओं में परस्पर प्रतिक्रिया सम्भव कैसे है ? अतः स्पीनोजा ने प्रतिक्रियावाद के स्थान पर समानान्तरवाद की स्थापना की। लाईबिनीज ने पूर्वस्थापित सामंजस्य की अवधारणा प्रस्तुत की। भारतीय चिन्तन में भी प्राचीन काल से स सम्बन्ध में प्रयत्न हुए हैं। उसमें यह प्रश्न उठाया गया कि लिंगशरीर या कर्मशरीर आत्मा को कैसे प्रभावित कर सकता है ? सांख्य दर्शन पुरुष और प्रकृति के द्वैत को स्वीकार कर के ही इनको पारस्परिक सम्बन्ध को नहीं समझा पाया, क्योंकि उसने पुरुष को कूटस्थ नित्य मान लिया था, किन्तु जैन दर्शन ने अपने वस्तुवादी और परिणामवादी विचारों के आधार पर इनकी | सफल व्याख्या की है। वह बताता है कि जिस प्रकार जड़ मादक पदार्थ चेतना को प्रभावित
करते हैं, उसी प्रकार जड़ कर्मवर्गणाओं का प्रभाव चेतन आत्मा पर पड़ता है, इसे स्वीकार किया जा सकता है। संसार का अर्थ है -- जड़ और चेतन का वास्तविक सम्बन्ध। इस सम्बन्ध की वास्तविकता को स्वीकार किये बिना जगत् की व्याख्या सम्भव नहीं है। तकर्म का अमूर्त आत्मा पर प्रभाव
। यह भी सत्य है कि कर्म मूर्त है और वे हमारी चेतना को प्रभावित करते हैं। जैसे मूर्त भौतिक विषयों का चेतन व्यक्ति से सम्बन्ध होने पर सुख-दुःख आदि का अनुभव या वेदना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org