Book Title: Sramana 1994 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 91
________________ 89 अर्धमागधी आगमसाहित्य में समाधिमरण नहीं समझते। इतना अवश्य ज्ञातव्य है कि इनमें से कुछ कथाओं के निर्देश श्वेताम्बर परम्परा में मरण विभक्ति में तथा अचेल परम्परा में भगवती आराधना में भी पायें जाते हैं । यहाँ हम केवल अन्तकृतदशा (वर्ग 8. अध्याय 1 ) का वह उल्लेख करना चाहेंगे जिसमें साधक किस स्थिति में समाधिमरण ग्रहण करता था, इसका सुन्दर चित्रण निम्न है - -- "तत्पश्चात् काली आर्या, उस उराल - प्रधान, ( विपुल, दीर्घकालीन, विस्तीर्ण, सीक - शोभासम्पन्न, गुरू द्वारा प्रदत्त अथवा प्रयत्नसाध्य, बहुमानपूर्वक गृहीत, कल्याणकारी, निरोगता - जनक, शिव-मुक्ति के कारण-भूत, धन्य, मांगल्य, पापविनाशक, उदग्र- तीव्र, उदार - निष्काम होने के कारण औदार्य वाले, उत्तम, अज्ञान अन्धकार से रहित और महान् प्रभाव वाले, तपः कर्म से शुष्क- नीरस शरीर वाली, रुक्ष, मांस रहित और नसों से व्याप्त हो गयी थी। जैसे कोई कोयलों से भरी गाड़ी हो, सूखी लकड़ियों से भरी गाड़ी हो, पत्तों से भरी गाड़ी हो, धूप में डालकर सुखाई हो अर्थात् कोयला, लकड़ी पत्ते आदि खूब सुखा लिये गये हों और फिर गाड़ी में भरे गये हों, तो वह गाड़ी खड़खड़ आवाज करती हुई चलती है और ठहरती है, उसी प्रकार काली आर्या हाड़ों की खड़खड़ाहट के साथ चलती थी और खड़-खड़ाहट के साथ खड़ी रहती थी । वह तपस्या से तो उपचित-वृद्धि को प्राप्त थी, मगर मांस और रूधिर से अपचित-हास को प्राप्त हो गयी थी । भस्म के समूह से आच्छादित अग्नि की तरह तपस्या के तेज से देदीप्यमान वह तपस्तेज की लक्ष्मी से अतीव शोभायमान हो रही थीं । एक दिन रात्रि के पिछले प्रहर में काली आर्या के हृदय में स्कन्दमुनि के समान यह विचार उत्पन्न हुआ "इस कठोर तप साधना के कारण मेरा शरीर अत्यन्त कृश हो गया है । तथापि जब तक मेरे इस शरीर में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम है, मन में श्रद्धा, धैर्य एवं वैराग्य है तब तक मेरे लिये उचित है कि कल सूर्योदय होने के पश्चात् आर्या चंदना से पूछकर, उनकी आज्ञा प्राप्त होने पर, संलेखना झूषणा का सेवन करती हुई भक्तपान का त्याग करके, मृत्यु के प्रति निष्काम होकर विचरण करूँ।" ऐसा सोचकर वह अगले दिन सूर्योदय होते ही जहाँ आर्या चंदना थी वहाँ आई और वंदना - नमस्कार कर इस प्रकार बोली-"हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं संलेखना झूषणा करती हुई विचरना चाहती हूँ ।" आर्या चन्दना ने कहा "हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो । सत्कार्य में विलम्ब न करो।" तब आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर काली आर्या संलेखना झूषणा ग्रहण करके यावत् विचरने लगी । काली आर्या ने आर्या चन्दना के पास सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और पूरे आठ वर्ष तक चारित्रधर्म का पालन करके एक मास की संलेखना से आत्मा को झोषित कर साठ भक्त का अनशन पूर्ण कर, जिस हेतु से संयम ग्रहण किया था यावत् उसको अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक पूर्ण किया और सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई। इस प्रकार हम देखते हैं कि अन्तकृतदशा में जब शरीर पूर्णतया ग्लान हो जाय, ऐसी स्थिति में ही समाधिमरण लेने का उल्लेख है। प्रकीर्णक और समाधिमरण श्वेताम्बर परम्परा में समाधिमरण से सम्बन्धित जो ग्रन्थ लिखे गये हैं, उनमें चन्द्रवेध्यक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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