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जन मनमापत का अवधारणा
स्मरण करता है, दूसरा जो ग्लान वृद्ध व रोगियों की सुश्रुषा करता है, उनमें कौन श्रेष्ठ है ? इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जो वृद्ध, रोगी आदि की सेवा करता है, वह भगवान की ही सेवा करता है। इस प्रकार भक्ति में सेवा की जो अवधारणा थी, उसने एक लोक-कल्याणकारी रूप ग्रहण किया, यही जैन भक्ति की विशेषता है।
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