Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 449
________________ ३९०) शक हालघर मूलनायक श्री आदीश्वरश्री यह प्राचीन मंदिर है । वि. सं. १०१० में यति श्री यशोभद्र सू. म. गर्भद्वार और शिखरबंध देरासरजी केशीगर जोगी शीवमंदिर तपेश्वर महादेव यह दोनों गुड़ा बालोतरा की निकट में आया हुआ खेड़ा गाँव से आकाश मार्ग द्वारा लाये थे इसमें शर्त थी की जब कुकड़ा बोले उस समय मंदिर को छोड़ देने का । उस समय केशीगर जोगीने कुकडे की नकली आवाज निकाली इस लिये यशोभद्रसूरीने महावीर स्वामी जिनालय गाँव की बहार छोड़ दिया । और शीवमंदिर जब सच्चा कुकडा बोला उस समय गाँव के बीच में रखा इस प्रकार दोनों ने अपने अपने गुरु की आज्ञा अनुसार काम पूर्ण किया यह बनाव वि.स. १०१० में बना हुआ था । इसमें मूलनायक श्री महावीस्वामी थे श्री ऋषभदेव प्रभु को कब मूलनायक बनाये उसकी कोई साल मिलती नहीं है। २. श्री मुनिसुव्रत स्वामी घर देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. २०२८ में हुई। पहले यह मंदिर निकट में नहीं था । ३. श्री अजितनाथ शिखरबंध देरासरजी । मुनिसुव्रतस्वामी के अलावा सब १० देरासर शिखरबंध है। ४. श्री नागफणा सुपार्श्वनाथजी का देरासरजी । इसके पहले मूलनायक प्राचीन पार्श्वनाथजी थे । ५. श्री शांतिनाथजी का मंदिर बहुत प्राचीन है । उसकी नक्काशी बहुत अद्भुत है। ६. श्री नेमिनाथजीक प्राचीन मंदिर है। बाफणा कुटुंब रो बनाया हुआ है । नारदजी ने इस गाँव बनाया था । यह गाँव F FE में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नने यह देरासर बनाया था । ८. ७. श्री सोगठीया पार्श्वनाथजीका प्राचीन देरासर चडालिया कुटुंब ने बनवाया था । यहाँ से शेत्रुंजय पर जा सकते है । श्री गोड़ीजी पार्श्वनाथजी का प्राचीन देरासर है। ९. श्री वासुपूज्यस्वामी का देरासर प्राचीन है । १०. श्री शत्रुंजय तीर्थ का प्राचीन देरासर पहाड़ पर है। ११. श्री गिरनार तीर्थ का प्राचीन देरासर सहसावन सहित पहाड मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी की प्राचीन भव्य प्रतिमाजी है । देरासर भी बड़ा और विशाल है । मूलनायक के आगे श्री काउस्सग्गिया भगवान पर वि. सं. १२१५ वैशाख सुद १० का लेख है । और सं. १६८६ का अषाढ सुद ५ शुक्रवार का मूलनायक की नीचे लिखा हुआ लेख है । वैसे तो प्रतिमाजी काउस्सग्गिया और रंगमंडप में बहुत सारी प्रतिमाजी भगवान संप्रति और कुमारपाल राजा के समय की है झालोर के किले में से ४०० साल पहले श्री पद्मप्रभस्वामी को साये गये थे। पहले मूलनायक शांतिनाथजी थे २ श्री कुंथुनाथजी घर देरासर ३ श्री शांतिनाथजी और नेमिनाथजी देरासर श्री पद्मप्रभस्वामी के मंदिर में भूयहरा है। सब बंध है। कंपाउन्डमें अनंतनाथ दाहिने बाजु में श्री क श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ पर है दोनों पहाड़ पर गिरनार और शेत्रुंजय की रचना है। आने जाने मे करीब देढ घंटा लगता है । चढाव बहुत नहीं है। मूलनायक श्री आदीश्वरनाथजी सादड़ी के बहार राणकपुर देरासर जाते समय रास्तें में चोर डाकु और कुर प्राणीओं की तकलीफ के कारण यहाँ एक शेठने देरासर बनवाया । इसे बनानेवाले केसरीमलजी धारवाड़ वाले ने बनाया है। उनका परिवार यहाँ रहता है। धारवाड़ में भी रहते है । करीब ५०० साल पहले यह देरासरजी बनवाया गया हैं। यहाँ के पुजारी देवाजी रावल ने कहा कि नाडलाई ट्रेकरी पर आदीश्वरजी का देरासर है । वह देरासरजी खेड़ा से उठाकर यशोभद्रसू. म. ने नाइलाई टेकरी पर प्रतिष्ठा की २००० साल पूराना पद्मप्रभ स्वामी का देरासरजी है । नेमिनाथजी का देरासर भी पूराना है । भक्तामर स्तवन बनानेवाले मानतुंग सूरिजी म. की मूर्ति पूरानी है। यहाँ से राणी २८ कि.मी. फालना ४० कि.मी. देसुरी .कि.मी. और घाणेराव १३ कि.मी. अंतर पर है। अष्टमंगल MON १७. नाडोल तीर्थ SMa गोड़ीजी पार्श्वनाथ के छोटे मंदिर है । श्री श्यामवर्ण चौमुख आदीश्वरजी प्राचीन है। बावन जिनालय है। और जलमंदिर, एक पादुकाजी, मूलनायक के पीछे छत्री है। अभी काम चालु है । शांतिनाथजी का मंदिर प्राचीन है । प्रतिष्ठा १६८६ में संपन्न हुई है । पहले दूसरे मूलनायक होने की कल्पना है । रंगमंडपमें दो प्रतिमाजी संप्रति के है। सुमतिनाथ दाहिने ओर पद्मप्रभस्वामी बाँचे बाजु है। खुदाई काम करते समय यहाँ से निकले हुए एक फर्लांग दूर खेत में से निकले हुए सुमतिनाथ और पद्मप्रभस्वामी संप्रति राजा के समय के है । श्री नेमिनाथजी के जो हाल में प्रतिमा हैं। जो बादमें प्रतिष्ठित हुई है । पहले के नेमिनाथजी भूयहरे में है पर कीसीको मिलते नहीं है । "

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