Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 502
________________ राजस्थान विभाग : ६ जेसलमेर जिला मूलनायक श्री आदीश्वरजी ४. लोद्रवपुर तीर्थ मूलनायक श्री सहस्रफणा (लोद्रवा ) पार्श्वनाथजी प्राचीन कालमें लोद्र राजपुतों की यह राजधानी थी और उसे लोद्रवपुर कहा जाता था यहाँ भारत का प्राचीन विश्व विद्यालय था श्री सगर राजा के पुत्र श्रीधर और राजधरने जैनाचार्य के पास से उपदेश ग्रहण करके वे जैनधर्मी बन गये थे । उन्होंने श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया था । यह बात सहज गणिवरने शतदल पद्मयंत्र की प्रशस्ति में लिखी है । जो गर्भगृह की दाहिने ओर देखने को मिलती है। जेसलजीने जेसलमेर बसाया था । उसे उनके भतिजे लोद्रवा के राजा राजदेवकी साथ अनबन हो गई और मुहंमदघोरी की साथ उसने संधि कर युद्ध किया । राजदेवकी हार हूई लोद्रवा तहसनहस हो गया तब यह चिंतामणि पार्श्वनाथ को लोद्रवा से जेसलमेर लाये गये और वही आज मुख्य देरासरजी के मूलनायक है सं. २ का लेख आज भी यहाँ मोजुद है । जो २००० साल पूराना है । शेठ श्री धीरशाहने यह प्राचीन मंदिरों का जिर्णोद्धार किया था । जब वे शेत्रुंजय यात्रा संघ से वापस आ रहे थे । तब उन्हें दो प्रभुभक्त सोमपुरा कारीगर मीले उन्होंने जिवनभर की महेनत से बनाई हुई सहस्रफणा पार्श्वनाथ की और अन्य दो मूर्तियाँ लेकर मुलतान जा रहे थे । उस समय भगवान ने उन्हें स्वप्न में कहा कि इन मूर्तियाँ धीरुशाह को दे देना और धीरशाह को स्वप्न में कहा कि इन मूर्तियों को रख लेना दूसरे दिन दोनों मिले और शेठने अमरसर जैन देरासरजी मूर्तियों के वजन बराबर सोना (सूवर्ण) देकर यह मूर्तियाँ खरीद कर ली लकड़ी के रथ में मूर्तियाँ लाई गई थी और सुंदर नक्कासी वाला रथ भी साथ में दे दिया जो आज भी लोद्रवपुर में है 1 वैसा कहा जाता है कि शेठ इस रथ को तीर्थयात्रा में भी साथ ले गये थे । दुर्लभ कसोटीवाले सहस्रफणा पार्श्वनाथजी कहा जाता है । सं. १६७३ में मृगशीर्ष सुद १२ के दिन आ. श्री जिनराज सूरिश्वरजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । थीरुशाह ने प्राचीन तीर्थ का उद्घारकर के बड़ा सुकृत्य किया अंतिम जिर्णोद्धार सं. २०३४ में हुआ था । पार्श्वनाथ के नीचे १२३७ का लेख है । एक तूटे हुओ परिकर में ११२२ का लेख है । पहले के समय में जैनाचार्य यह रास्ते से मूलतान जाते थे और उन्होंने राजकुमारो को प्रतिबोध किया था। बाद में लोद्रवपुर तीर्थ की स्थापना कि गई थी। आज यहाँ नगर के अवशेष पाये जाते है । यहाँ अधिष्ठायक नागदेव का भी स्थानक है जो कभी कभी दर्शन भी देते है। मद्रास के तीर्थ दर्शन का प्रतिनिधि मंडल जब यहाँ आया था । तब उन लोगों को दर्शन हुये थे । दूसरे सहस्रफणा पार्श्वनाथ भमति में मूलनायक की बाँये ओर प्रवेशद्वार की निकट में अक छोटे देरासर में विराजमान है। धर्मशाला और भोजनशाला है । यह जगा जेसलमेर से १५ कि.मी. दूर है । वहीवट जेसलमेर की पेढी द्वारा होता है। फोन नं. ३० यह लोद्रवा पार्श्वनाथजी की यात्रा बहुत महत्व की है। (४४३

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