Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 521
________________ ४६२) DINI पूराने मूलनायक श्री महावीर स्वामी Fo मूलनायक श्री नाकोडा पार्श्वना संवत ११३३ में नाकोड़ाजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। विशाल कम्पाउन्ड है। यहाँ से १८ कि.मी. दूर नाकोड़ा गाँव से ५०० साल पहले श्री रत्नकीर्ति सु. म. यहाँ प्रभुजी को लाये थे । पहले इस गाँव का नाम वीरमपुर था । नाकोड़ा तीर्थ में ३ जिन मंदिर है । १ ऋषभदेवजी का २ शांतिनाथजी का ३ नाकोडा पार्श्वनाथजी का जो शिखरबंध है ४ चीमुखजी दादावाडी में हैं, विक्रम की तीसरी सदी के पूर्व दो राजकुमार भाइओ में से एक वीरमहंत ने विरमपुर की स्थापना की थी और दूसरे नाकोरसेनने नाकोर नगर बसाया था । दोनों नगर ७ मिल के अंतर पर है पू. आ. श्री स्थूलभद्र सू. म. की निश्रा में नाकोर नगर में श्री सुविधिनाथजी और वीरमपुरमें श्री चंद्रप्रभ स्वामी की जिन मंदिर में प्रतिष्ठा हुई थी। बादमें कई बार जिर्णोद्धार हुआ है। वीर निर्माण २८१ में सम्राट अशोक के पीत्र सम्राट सांप्रति ने यह दोनो मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया था । और आर्य सुहस्ति सूरि म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई वीर निर्माण श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ नाकोडाजी तीर्थ भैरवजी देरासरजी ५०५ में उज्जैन के विक्रमादित्य राजाने विद्याधर गच्छ के आ. सिद्धसेन दिवाकर सू. म. की निश्रा में बहुत से मंदिरो का जिर्णोद्धार और प्रतिष्ठा करवाई थी। वीर निर्माण ५३२ में (वि.सं. ६२) आ. श्री मानतुंग सू. म. ने यह दोनों मंदिरो का जिर्णोद्धार करके प्रतिष्ठा की थी। इसके बाद आ. श्री देवसूरीजी के उपदेश से श्री संघ ने वि.सं. ४१५ में विरमपूर के मंदिर का और वि. सं. ४२१ में नाकोर नगर के जिनमंदिरोंका जिर्णोद्धार करवाकर प्रतिष्ठा संपन्न की थी। बाद में वि. सं. की ९ वीं सदी में जिर्णोद्धार हुआ । नाकोड़ा तीर्थ की पेदी में यादी है कि यहाँ वि.सं. ९०९ में जैनो के २७०० घर थे। इनमे से नातेड गोत्र के शेठ श्री हरखचंदजी ने विरमपुर तीर्थ का जिर्णोद्धार करके श्री महावीर स्वामी की स्थापना की थी। वि. सं. १२२३ में श्री संघने मंदिर का संपूर्ण जिर्णोद्धार करके मूलनायक श्री महावीर स्वामी की पुनः स्थापना करवाई वि. सं. १२८० में मुसलमानों ने वीरमपुर उपर आक्रमण किया था ।

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