Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 513
________________ ४५४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३. फलोधी तीर्थ मा फलोधी तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनावजी श्री गोडीजी पार्श्वनाथ मूलनायक आदि अन्य ५ प्रतिमाजी है। रंगमंडप काचका है । उपर की मंझिल पर श्री आदीश्वरजी की ३ प्रतिमाजी है । इस देरासरजी १२५ साल पूराना है। श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १९०६ में संपन्न हुई थी माघ सुद १० का दिन था । इसका जिर्णोद्धार दक्षसूरीश्वरजी म. के हस्तों से हुआ था । सं. १९९६ में पू.आ. श्री कमलसूरीजी म. के पू.आ. लब्धिसूरी म. के उपदेश से हुआ था । इस मंदिर की तीसरी मंझिल पर श्री सीमंधर स्वामी बिराजमान है । यह देरासर में गोडीजी पार्श्वनाथजी की बाँये ओर श्री पार्श्वनाथजी ६ प्रतिमाजी है । श्री समेत शिखरजी का पट्ट कीसी अगम्य कारणसर बाहर के प्रकाश से प्रकाशित है । मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथ के दाहिने हाथ ओर अलग देरी में श्री पार्श्वनाथ ३ है । जीसमें श्री पार्श्वनाथ के नीचे के भाग में सं. १२२६ का लेख है। उनकी दाहिने ओर की मूर्ति प्राचीन और भव्य है । बाँये हाथवाले इतने पूराने नहीं है। शांतिनाथजी, प्राचीन शीतलनाथजी (१५०३) आदीनाथ आदि ५ प्राचीन है । नक्कासी अच्छी है । दोनों ओर देरी में भगवान है। श्री गोडीजी पार्श्वनाथ, शीतलनाथ, शांतिनाथ, मुनिसुव्रत, संभवनाथ, महावीर स्वामी, नेमिनाथ, श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की छोटी देरीयाँ है । श्री महावीर स्वामी मंदिर स्टेशन की निकट में है पहले जैनों के १२०० घर थे । अब ३५० घर है। धर्मशाला और भोजनशाला भी है। मेड़ता रोड स्टेशन २ फलाँग की दूरी पर है। मेड़ता शहर १५ कि.मी. दूर है । पो. मेड़ता रोड जि. नागोर । मंडोर तीर्थ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के नीचे सं. १७२३ महा वद ८ का लेख है । जिनहर्षसूरीश्वर म. के हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । गर्भगृह में पार्श्वनाथजी सहित ५ प्रतिमाजी है । दाहिने ओर गोख में मूलनायक के पास जो मूर्ति है । वह प्राचीन है । रंगमंडप में आरस की पांच मूर्तियाँ है और एक उँचे हाथवाली आरस की चोविसी है। जो प्राचीन मानी जाती है । एक मूर्ति में सं. १७१४ लिखा है । कम्पाउन्ड के बाहर की बाजु में आदीनाथ का गुंबजवाला देरासर है । दाहिनी ओर सं. १७३३ का लेख है। ** ** ** * * 00

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