Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 517
________________ ४५८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री स्वयंभू पार्श्वनावजी कहा हिंमत नहीं हारना आपका सन्मान होगा और वैसा ही हुआ । यह प्रतिमाजी सं. १६७४ मार्गशीर्ष वद १० पार्श्वनाथजी राजाने ५०० चांदी की महोरो से बहुमान क्रिया आते समय यति जन्म कल्याणक के दिन जमीनमें से स्वयंभू प्रगट हुई थी । ईस मिले उन्हों ने मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी, भानाजी ने महोर लिये उसे स्वयंभू पार्श्वनाथजी कहा जाता है । जेतारण के धरी, यतिने थेली में डालकर वासक्षेप डाला और जीतना चाहे हाकिम श्री भानाजी भांडारी ने ४ मंझिला मंदिर बना के पू. आ. इतनी महोर निकालना मगर उसे उंधा नहीं करना । काम पूर्ण श्री जिनचंद्र सू. म. के वरद् हस्तों से सं. १६७८ वैशाख सुद। होने के समय भानाजी के पुत्र नरसिंह ने थेली को उंधा कर १० के दिन प्रतिष्ठा करवाई थी । यह लेख प्रतिमाजी की नीचे . दिया सोना महोर निकली गई और थेली खाली हो गई । वहाँ है | पू. नेमिसूरीजी म. जब यहाँ पधारे उन्होंने इसकी दशा , जिनचंद्रजी म. पधारे प्रतिमाजी की शोध की जो कापरड़ाकी देखकर जिर्णोद्धार करवाने को चाहा उनके उपदेश से हुआ । बबुल की झाड़ी में थी। दो दफा शोध की बाद में भगवान खुद सं. १९७५ महा सुद पंचमी के दिन उनके वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा प्रगट हुएं और प्रतिष्ठा संपन्न हुई तबसे इसे स्वयंभू पार्श्वनाथजी संपन्न हुई। चौथी मंझिल पर एक ही प्रतिमाजी थे दूसरे १५ कहा जाता है । ९५ फूट का शिखर ८ कि.मी. दूर से दिखाई प्रतिमाजी को पधराये और चौमुखी पूर्ण किया इस कारण से यह देता है । मंदिर बहुत कलात्मक है । चैत्र सुद पंचमी के दिन तीर्थ बहुत प्रचलित हुआ । यह प्रतिमाजी के लीये भानाजी मेला लगता है । भोजनशाला, धर्मशाला भी है। यह स्थान भांडारी जोधपुर के नरेश गजसिंह के जेतारण के हाकिम थे। सिलादी रेल्वे स्टेशन से ८ कि.मी., पिपाड शहर से १६ कि.मी. दूसरों की कानफँसी से सजा करने यहाँ बुलाये भानाजी का और जोधपुर से ५० कि.मी. दूर है। शेठ आणंदजी कल्याणजी नियम था कि प्रभुजी के दर्शन बिना भोजन नहीं करते थे। पेढी जि. जोधपुर। कापरडाजी में यति के वहाँ भगवान के दर्शन किये यतिने कहा ************************ ७. गांगाणी मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी पित्तल के श्री आदीश्वरजी

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