Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 518
________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४५९ SMS हुई थी । गर्भगृह में मूलनायक के साथ पाँच भगवान है । हाल के मूलनायक पू. आ. श्री समुद्रसूरी म. ने प्रतिष्ठित किये हैं। दाहिने ओर के गोख में सं. १६५८ का लेख है । बाँये ओर के गोख में श्री विमलनाथजी संप्रति राजा के समय के हैं । रंगमंडप में दाहिने ओर ऋषभदेवजी धातु के परिकर युक्त श्री अरिहंत की मूर्ति पहले दूसरे देरासर में थी । जो हाल यहाँ पधराई है। प्रायः १८ से २१ इंच के है। सं. १६०० की आसपास की है। यह बड़ा शिखरवाला देरासर भव्य है। नीचे वाले मूलनायक जोधपुर ले गये है । धातु की ऋषभदेवजी की मूर्ति ४०० साल पहले एक भाई को मीली थी। जो मूर्ति हाल में प्रवेशद्धार की अंदर है । गांगाणी में धातु के आदीनाथजी की बड़ी प्रतिमाजी की नीचे सं. ९३९ का लेख है। उपर के पद्मप्रभ स्वामी की प्रतिष्ठा सेनसूरी म. के शिष्य ने सं. | १६८४ में की थी । धातु की मूर्ति जीस भाई को मिली थी। उसका नाम श्री घेवरचंद हरखचंद था । सं. १६६२ में दूधेला तालाब के पास ६५ प्रतिमाजी निकली थी । इन प्रतिमाजी में एक ही पू. श्री भद्रबाहु स्वामी म. के हस्तों से चंद्रगुप्त राजाने और पू.सू. हस्ति सू. म. के हस्तों से सम्राट संप्रति ने भरवाई थी। पर आज उसकी हस्ती नहीं है । पहले यहाँ जैनों के करीब १००० घर थे । हाल में एक भी नहीं है । धर्मशाला और भोजनशाला है | जोधपुर से ३६ कि.मी., उमेदपुर से १० कि.मी., जोधपुर होकर ओसिया तीर्थ जा सकते है। गांगाणी जैन देरासरजी K मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी सम्राट संप्रति ने यह गांगाणी तीर्थ का देरासर बनाया था। वि. सं. १९७ साल पूर्व का यह मंदिर है। इस देरासर का जिर्णोद्धार पांच दफा हुआ था । भारत के श्री जैन संघो द्वारा वि. सं. १९८२ में छछा जिर्णोद्धार वीर सं. २४८७ में चैत्र वद ७ गुस्वार के दिन श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न द्वारिका नगरीनो नेम राजीयो, तजी छे जेणे राजुल जेवी नार रे; गिरनारी नेम संयम लीधो छे. बाळावेशमां..१ भाभीओ मेणुं मायुं नेमने, परणवा चाल्यो श्रीकृष्णनो वीररे; गिरनारी नेम, संयम लीधो छे बाळावेशमां...२ मंडप रच्यो छे मध्य चोकमां, हरख्या छे सौ द्वारिका नगरीना लोक रे..... गिरनारी..३ गोखेथी राजुल सखी जोइ रहया, क्यारे आवे जादवकुल दीपक रे. गिरनारी....४ सासुओ पोंखण कीधा नेमने, वालो मारो तोरण छबाय रे. गिरनारी....५ पशुओ पोकार कर्यो नेमने, उगारो वहाला राजिमती केरा कंथ रे गिरनारी......६ नेमजीओ साळाने पूछीयु, शाने काजे पशु करे पोकार रे. गिरनारी नेम.....७ राते राजुल बेनी परणशे, प्रभाते देशुं गौरवना भोजनरे गिरनारी.....८ नेमजीओ रथ पाछा वाळीया, जइ चडया गिरिगुहा मोझार रे गिरनारी....९ राजुल हवे छे मेली ध्रुसके, स्वे स्वे द्वारिका नगरीना लोक रे गिरनारी.....१० हीरविजय गुरु हीरलो, श्री लब्धिविजय गुण गायरे. गिरनारी....११

Loading...

Page Navigation
1 ... 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548