Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 509
________________ ४५०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन: भाग सिद्धारथना रे नंदन विनवू, विनतडी अवधार; ___ भवमंडपमा रे नाटक नाचीयो, हवे मुज दान देवराव, हवे मुज पार उतार. सिद्धा.१ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावे रे संताप; दान दियंता रे प्रभु कोसीर कीसी ? आपो पदवी रे आप. सिद्धा.२ चरण अंगुठे रे मेरु कंपावीयो, मोडयां सुरनां रे मान; अष्ट कर्मना रे झगडा जीतवा, दीधां वरसी रे दान. सिद्धा.३ शासननायक शिवसुख दायक, त्रिशला कुखे रतन; सिद्धारथनो रे वंश दीपावीयो, प्रभुजी तमे धन्य धन्य सिद्धा.४ वाचकशेखर कीर्तिविजय गुरु पामी तास पसाय; धर्मतणा अह जिन चोवीसमा, विनयविजय गुण गाय. सिद्धा.५ ओस्वाल प्रतिबोधक पू.आचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वरजी म. ओसीया तीर्थ जैन देरासरजी

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