Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 459
________________ ४००) ··········· 樂樂樂樂樂樂樂 मूलनायक श्री शांतिनाथजी 梁梁樂樂樂 २६. जाखोड़ा मूलनायक श्री नवलखा पार्श्वनाथजी नवलखा मंदिर प्राचीन है । सं. ९६८ में सांडेराव तीर्थ की प्रतिष्ठा के समय मंत्र शक्ति से पाली से घी लाया जाता था उसके ९ लाख देते समय वो श्रावक ने वह रुपीये लेने का इन्कार किया । इसी कारण यहाँ मंदिर बनाने की योजना हुई। यह मंदिर पूर्ण होने के बाद इसे नवलखा मंदिर का नाम दिया गया है । ११४४ में ईस का जिर्णोद्धार हुआ था । १६८६ में फीर से जिर्णोद्धार कराके वहाँ मूलनायक महावीर स्वामी को बदलकर पार्श्वनाथ प्रभुजी को बिराजमान किये गये है और वही नवलखा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है । 1 २७. पाली श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन जाखोड़ा जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह प्राचीन देरासर है । सं. १५०४ का लेख है । मूर्ति भव्य है । पहाड़ों के बीच जाखोड़ा गाँव में यह देरासर आया हुआ है । पोमावा के शेठने उपाश्रय और नया देरासर बनवाया है। जवाई बंध स्टेशन से १३ कि.मी. और शिवगंज से ८ कि.मी. और सुमेरपुर से ७ कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ आया हुआ है । नेमिनाथजी है और बाँये ओर श्री नेमिनाथजी के नीचे सं. ११४४ माघ सुदी ११ रविवार का लेख है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी के नीचे संवत ११५८ अषाढ सुद ८ गुरुवार का लेख है । दाहिनी ओर गोखमें संवत ११७८ फाल्गुन सुद १३ की श्री आदीनाथजी की मूर्ति भी संप्रति राजा के समय की है बाँये के गोख में चंद्रप्रभ स्वामी की महाराजा कुमारपाल के समय की प्रतिमाजी है । यह पाँचों ही प्रतिमाजी प्राचीन और भव्य है । पूराना महावीर स्वामी का मंदिर पार्श्वनाथजी के पीछे स्वतंत्र देरासर है । हालमें पार्श्वनाथजी की भमति में मूलनायक पार्श्वनाथजी के बराबर पीछे के भाग में है। श्री महावीर स्वामी की मूर्ति बहुत सुंदर और आकर्षक है। श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाजी सम्राट संप्रति के समय की है । उनके दाहिने और 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 選桌來來來來來來來來來來來來來 भाग-१ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की बाँये ओर भमति में श्री ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा सं. ११७८ फागण सुद ११ शनिवार के दिन हुई थी । यह तीनों प्रभुजी राजा संप्रति के समय के है । मूलनायक की दाहिने ओर भमति में लेख युक्त नेमिनाथजी और दाहिने ओर महावीर स्वामी और आदीश्वरजी संप्रति राजा के समय के है । दोनों गोखमें पार्श्वनाथजी महाराजा श्री कुमारपाल के 樂樂樂樂樂大麻 樂樂樂果

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