Book Title: Shuklyajurvediya Graha Shanti Prayog Author(s): Durgashankar Shastri Publisher: Durgashankar Shastri View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रहशान्तिक | गणपतिपूजनमः ॥१ ॥ सर्वेषां प्राणायामे विनियोगः ॥ ॐभूः ॐभुवः स्वः महः जनः तपः *सत्यम् अतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्यधीमहि ॥ थियो । योन प्रचोदयात् ॥॥ ॐआपोज्योतीरसोमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ॥ एवं पूरकः कुम्भकः रेचकः क्रमेण त्रिवार पठेत् ॥ | यजमानललाटे तिलकं कुर्यात्-*स्वस्तिनऽइन्द्रोवृद्धश्रवाहस्वस्तिन पूषाविश्ववेदाट ॥ स्वस्तिनस्तार्योऽअरिष्टनेमिहस्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु ॥ २६ ॥ स्वस्तिस्तु याऽविनाशाख्या पुण्यकल्याणवृद्धिदा । विनायकप्रिया नित्यं वरदास्तु सदा तव ॥ | भद्रसूक्तं पठेत्-ॐआनोभद्राकतवोयन्तुविश्वतोदब्धासोऽअपरीतासद्भिद ॥ देवानोथासमिद्धेऽअसन्नायुवोरक्षितारोदिवेदिवे ॥३६॥ देवानाम्भद्रासुमतियतान्देवाना रातिभिनोनिवर्त्तताम् ॥ देवानासख्यमुपसेदिमावयन्देवानऽआयुरमतिरतुजीवसे ॥३५॥ तान्पूर्वयानिविदाहूमहेवयम्भगम्मित्रमदितिन्दक्षमस्त्रिधम् ॥ अर्य्यमणंबरुण सोममुश्विनासरस्वतीनसभगामयस्करत ॥ १६ ॥ तन्नोबातोमयोभुवातुभेषजन्तन्मातापृथिवीतत्पिताद्यौ? ॥ तद्ग्रावाण सोमसुतोमयोभुवस्तदश्विनाशृणुतन्धिष्ण्यायुवम् ॥ ३६॥ तमीशानञ्जगतस्तस्त्थुषस्पर्तिन्धियाञ्जिन्वमवसेहूमहेवयम् ॥ पूषानोयथावेदसामसदृधेरक्षितापायुरदब्धहस्वस्तये ॥ १६ ॥ स्वस्तिनऽइन्द्रोंवृद्धश्रवास्वस्तिन+पूषाविश्ववेदाट । स्वस्तिनस्ताक्ष्योऽअरिष्टनेमिहस्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु ॥ ३९ ॥ पृषदश्वामरुतःपृश्निमातरशुभंय्यावानोविदथेषुजग्मयह ॥ अग्निजिवामनवमूरचक्षसोविश्वनोदेवाऽअवसागमनिह ॥३६॥ भद्रङ्कर्णेभिशृणुयामदेवाभद्रम्पश्येमाक्षभिर्यजत्रा ॥ स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहिदेवहितय्यदायु ॥२३॥ शतमिन्नशरदोऽअन्तिदेवाघानचक्क्राजरसन्त॒नूनाम् ॥ पुत्रा सोपत्रपितरोभवन्तिमानौमद्ध्यारीरिषतायुगन्तोट ॥ २३ ॥ अदितिौरदितिरन्तरिक्षमर्दितिर्मातासपितासपुत्र ॥ विश्वेदेवाऽअदितिपऋजनाऽअदितिर्जातमदितिजनित्वम्॥वाद्यौटशान्तिरन्तरिक्षशान्ति पृथिवीशान्तिरापदंशान्तिरोषधयाँशान्ति ॥ वनस्पतयशान्ति ॥१ ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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