Book Title: Shrutsagar 2019 12 Volume 06 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 दिसम्बर-२०१९ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥४४॥ ॥४५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ श्रुतसागर असतखांन कहै इसो, जुलफकार(खांन?) आजार ४ । देखी नाडि(डी) विचारिरी)कै, करो कोइ उपचार तब मनमांहे सोचि(ची)कै, भीमविजय मंगाय। जनमपत्रिका देखी करी, कहै वचन सुखदाय दो पहरां५ पीछे तुरत, सवा ६ उतरसी ताप। दोन्यु भेला बेसकै, खाणा खास्यो आप मास पांच को गर्भ छै, कहै इसी परि वाच । खोजे पूछ्यो जायकै, सबही जांण्यो साच इसो वचन सुणी हर्ष को, हूओ निवाब खुस्याल। भीमविजय को हेतसुं, कर च्यु(चुं)ब्यो ततकाल कीधी चरचा जुगतकर, हूओ वडो सबाब । जे जे उण पूछ्या सवे, ते ते दीया जवाब ॥छंद-वृद्धनाराच॥ जवाब साच भाखतं निवाब आव रंजयं, जु(जू)डे ए(अ)नूप रूप भूप तिहां विचै लही जयं । अनंत मान जोग जान दीध हेत जांनिके, जती(ति) प्रवीन है अकीन लोभहीन जांन(मांनि)के वधि(धी) प्रतीत प्रीत चित्त सव्व ही जना विचै, मिटी अनीति ईति भीति संजती(ति) रह्यो हिचै६३ । गुणै गहीर सूरवीर केवीयां अंगजणो, रिधू-नरिंद आसुरिंद राव राण रंजणो मुनिं(नीं)दवृंद-मंडली मही विचालमंडणो, डिगै नही अडोल बोल राखी दुष्ट दंडणो। खरे सुभाय५ आय पाय लागी प्रीत देखए, लहंत रिद्धि सिद्धि जेह गैवकी६ अलेखए भणंत लोक वाह वाह धन्य धन्य भीमयं, महासुजस खाटणो दि(दी)पै समंद सीमयं । ॥४८॥ ॥४९॥ ॥५०॥ For Private and Personal Use Only

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