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SHRUTSAGAR
२२
December-2019
कर्ता
पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम - जीवविचार याने जैनशासन- जीव विज्ञान
- श्री शान्तिसूरि संपादक
श्री योगतिलकसूरि म. सा. प्रकाशक - शांतिकनक श्रमणोपासक ट्रस्ट, सुरत प्रकाशन वर्ष - वि.सं. २०७५ मूल्य
- ९००/
२८८ भाषा - प्राकृत मूल, संस्कृत छाया एवं गुजराती विवेचन विशेषता - चित्रों की प्रधानता से जीवविचार प्रकरण का विवेचन
जैनधर्म-दर्शन को समझने का अर्थ है, जीव के स्वरूप को समझ लेना, और जीव के स्वरूप को समझने का अर्थ है, परमात्मा के रहस्य को समझ लेना। जीव अर्थात् आत्मा। जीव यानी चेतन । जीवों का विचार अर्थात् मेरा, आपका और सभी जीवों का विचार करना । जीवों के सद्गुण-दुर्गुण के संबंध में जानकारी प्राप्त करनी। जीवों के भेद-प्रभेद को जानना।
जीव विचार प्रकरण कोई कहानी, उपन्यास या घटना प्रधान साहित्य नहीं है, बल्कि यह तत्त्वज्ञान से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण है, जिसमें जीवमात्र से संबंधित व्यापक जानकारी समाहित है। मात्र ५१ गाथाओं में जीवतत्त्व का व्यापक परिचय समाहित होने से प्रस्तुत प्रकरण का स्वाध्याय प्रत्येक स्वाध्यायी के लिए अनिवार्य सा हो गया है। जबतक जीवतत्त्व की सूक्ष्मता को हम नहीं समझेंगे तबतक उसके जीवन की सुरक्षा नहीं कर पाएँगे। प्रायः अनावश्यक और व्यर्थ की जीव हिंसा से हम स्वयं को दृषित कर बैठते हैं। इसका कारण है, जीव के प्रति अहिंसा धर्म के पालन के ज्ञान से हमारी अनभिज्ञता । यदि हम सभी प्रकार के निगोद से लेकर सिद्ध परमात्मा तक के जीव की स्थिति से अवगत हो जाएँ तो हम अपने जीवन को अहिंसामय बना सकते हैं, साथ ही उनके उपकारों का स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञ भी हो सकते हैं।
अब यहाँ प्रश्न है कि जैनशासन में जीवविचार का वर्णन तो श्री जीवाजीवाभिगमसूत्र तथा श्री प्रज्ञापनासूत्र जैसे आगम ग्रंथों में विस्तार से किया गया है, फिर अलग से इस ग्रंथ की उपयोगिता क्या है? यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि उपरोक्त महान शास्त्रों का अध्ययन-वांचन बालजीवों के लिए शक्य नहीं होने के कारण इस ग्रंथ की रचना की आवश्यकता हुई।
(अनुसंधान पृष्ठ-२१पर)
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