Book Title: Shrutsagar 2019 12 Volume 06 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
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दिसम्बर-२०१९ पातिसाह औरंग को, कुलकुल्ली दीवांन । सगला उमरावां सिरै, गाजी असतखांन
॥५९॥ चीती आयो भीम चित्त, कठमौरे २ सुधि पाय । मेली चाकर आपणां, लीधा तुरत बुलाय आंख्यां देखी आवता, आणी मन उल्हास। आदर दे हितसुं मिल्या, राख्या अपणे पास चित्त उपगार विचारीकै, कीया घणां का काम ।
आंटा३ काढ्या आगला, दि(दी)या न लागण दांम बहुत प्रसंसा भीम की, सुणी विजैप्रभु(भ)सु(सू)र । जांणी अवसर जुगतिसुं, कागल लिख्यो जरूर
॥६३॥ उपासिरो अजमेरगढ, सहर मेडते तेह। सोझित जैतारणि उभै, जोधाणामै जेह एती ठोर उपासिरा, औरु बीजा ठाहिं५ । हूआ खालसै६ बंधमैं, अजहू छूटा नाहिं तेह छूटावज्यो तुमे, चूको मती लिगार । जगि होसी तुमचो सुजस, जिनसासन जयकार
॥६६॥ संघ मेडता को कहै, कीज्यो ए शुभ काम। तुम परसादै छूटसी, सकल धरम का धाम चुप धारी चित्तमै चतुर, असतखांन पै१०० जाय । अरज करी ध्रमसाल की, द्यौ मुझ वेगि छूटाय असतखांन कहि बात सब, समझायो सुरतांण । छोड्या सरव उपासरा, करि(री) दीधो फुरमांण
॥ छंद- मोतीदाम ॥ दिदी)यो फुरमाण करी चिहुं देस, लिखंतह ढील न की लवलेस। कढाय ज खेर-वखेर कुसंग, बत्तीसह पू(पु)णि हूऔ उछरंग
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