________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SHRUTSAGAR
25
December-2019 किनारी खंडित है। कहीं-कहीं जीवातकृत छिद्र युक्त पत्र भी प्राप्त होते हैं साथ ही प्रत के अंतर्गत कृतियों का मूल पाठ भी अल्प मात्रा में खंडित है। इस हस्तप्रत की विशेषता यह है कि ताडपत्र के परंपरानुसार बीच में वापी, वापी के मध्य व दोनों पार्श्वरेखाओं के बाहर चंद्रक दिये गए हैं। इस प्रत में पत्रांक दो जगह दिये गए हैं। कोने में दिये गए पत्रांक १ से प्रारंभ होते हैं और पार्श्वरेखा बाहर चंद्रक के बीच बड़े अक्षरों में ९८ से पत्रांक नजर आते हैं। संभव है कि इस प्रत का अन्य भाग कहीं और हो। इस हस्तप्रत का सन्दर्भ ‘आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा तीर्थ' से प्रकाशित हस्तलिखित जैन साहित्य कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची' के खंड -१.१.२२, पृ.क्र.४६९ पर प्राप्त होता है।
नवतत्त्वविचारगर्भित महावीरजिन स्तवन ॥सामिय सोहगसार जग उज्जोयकर । जउ जिणेसर वीर तिहुयण वंछिय य कप्पतर
॥१॥ जे जगनायक जीव भवसागर दूतसतररई (दुस्तर तरइ)। ते सव वि सासण तुम्ह पदहणनी परि अणुसरइ तां जिण जण मिच्छत्त विस लहरिहिं थारिउ भमइ जी नवतत्त विचारु वयण सुहारस न हुगमइ अहवा पहु नवतत्त नवनिहाण जि लहइं। केवल लच्छि पसाइ ते नर तिहुयणि गहगहइं
॥३(४)॥ तउ हउं तिहुयणनाह तुम्ह वयण नवतत्तमय । वक्खाणिसु संखेवि वयणेतर तह ..णतय(सासणतय?)
॥भास ॥ जीवाजीवापुन्नं पावासवसंवरनिज्जरणा भावा। बंधो मुक्खो इइ नवतत्ता नायव्वा निम्मिय संमत्ता
॥६॥ चउदस चउदस बायालीसा छ्या(ब्या)सीई तह बायालीसा। सत्तावन्नं बारसभेया चउ नव पए कमसो नेया
॥७॥
॥२॥
॥३॥
For Private and Personal Use Only