Book Title: Shrutsagar 2019 12 Volume 06 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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दिसम्बर-२०१९
॥२१॥
॥२२॥
॥२३॥
श्रुतसागर
28 एयह तत्तह सद्दणिहु इणि मिच्छन्न(त्त) विणास। लहइ जीव समकितरयण अणुवम महि निवास सासय तेय समुल्लसइ तायणु नाणमणिदीव। जेह लगी जगि जाणियइ भावा जीवअजीवा दंसणनाणह जोगि तह चारिन्न(त)ह परिणाम। जेण जिणिज्जइ अरि सयल मोहलोहमयकामा सम्मं इय रयणत्तयह भत्तिहिं लहियइ सुक्ख। जत्थ जीवगय पावमल भुंजइ सासयसुक्खा इय नाणदंसणचरणगणगण रयणधारणरोहणो। सुरअसुरकिंनरनरमुणीसर मणवयण तणु मोहसणो॥ सिरि वीर जिणवर ति जयसायर सोमसम सुहकारणो। मह दिसउ निम्मंलवयणि रस जगतारणो
इति श्रीनवतत्त्वविचारमयं स्तोत्रं समाप्तम् ॥
॥२४॥
॥२५॥
(अनुसंधान पृष्ठ सं. ३० से)
गुजराती लिपिनी सर्वांग सुंदरता ए लेखकोनी नजर आगळ छे, एटले तो आ परिपाक हालना समयमां अति व्हेलो फळे ए पण कुदरती। आ विषयमां म्हारी छेल्ली अने सौथी मोटी अभिलाषा तो एवी के आ कुदरती समुत्क्रांति सिद्ध थाव, अने “सुं सां पेसा चार" नी लिपि “इधर उधरका सोळह आना” नी लिपि पण बनी रहे !*
(बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में से साभार)
* गुजराती लिपिमांना बे त्रण अक्षरने ठेकाणे देवनागरीना ते अक्षर माथां वगर एटले बोडा स्वीकारवामां आवे, तो आ बंने लिपि एक बीजीनी निकटतर आवे, ए वात विचारणीय छे. परंतु आमां पहेल कोणे करवी वारु? देवनागरी लेखको “माथां” छोडी दे, देवनागरी पुस्तको “माथां" वगर छपातां थाय, तो पछी ए लिपिमां आपोआप जे परिवर्तनो थवा पामशे गुजराती लिपि उपर पण पूरती असर उपजाव्या वगर नहीं रहे. नोटः- लेखक के प्रत्येक कथन से सम्पादक सहमत हो यह आवश्यक नहीं है।
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