Book Title: Shrutsagar 2019 12 Volume 06 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 ॥७१॥ ॥७२। ॥७४॥ ॥७६॥ SHRUTSAGAR December-2019 जिगामिग ज्योति जय-जयकार, उदो०२ जिनध्रम्म तणो अणपार। चिहुं दिसि मानव होत अचंभ०३, थयो जसु बोल रु(रू)प्यो जस-थंभ ॥७१।। सुगंधिय सुकडिनै०४ घर(न)सार, चढावय देवल देवल चार । जपै प्रभुनांम वडो भजनीक, जागति जुगति करै निरभीक ०५ धरै निस दीह जिनेसर ध्यान, नरां दुखियां निति(त) दीजय(जै) दान। हिव मनमांहि विचारिय हाम०६, धरा फिरि(री) कीजय(जै) तीरथधाम ॥७३॥ कहै कवि रांणपुरो वरकांण, जुहारि अरबुद गोडिय जाण। पुले०७ पथि कीध संखेसर पास, किता इम तीरथ कीध प्रकास चलै हिव आविय पाविय चैन, अखी थिरवास हरीगढ ऐन२० । महामुनि भीमविजै चत्रमास०९, रह्या सिरदार वडा पुनि(न)रासि(स) ॥७५।। दले लिय दिल्ल उदार सदीव, जडे जन बंदि छु(छू)डावय जीव । मुनि लघु जाणिय आयु प्रमांन, भगौतियसूत्र सूण्यौ शुभध्यांन सुणे वलि रायणसेणि(णी) संत, धरी मनि उत्तराध्ययन सिद्धां(द्ध)त। दसविकालिक धारिय दिल्ल, इग्यारह अंग सुनं(णं)त अवल्ल व(वं)चाविय११ आगमग्रंथ विसेष, सकोमल चित्त सुण्या सविशेष । जती(ति) सब ग्रंथ सुणावत जास, ततखिण लच्छि समापित१२ तास ॥७८॥ अनोपम हेम चढाविय अति, भली परि कीधह ण्यानह भगति। दया करि(री) ग्रंथ किताईक दीध, किता वस्त्र पात्र किता पुनि(न) कीध ॥७९।। कवित्त छप्पै। कीध पुन्य किरपाल पुन्यभंडार भली परि, भरे सबल भरपूर ध्यान जिनराज तणो धरि । संबल १३ लीधो साथि सुरग-मग्ग परभव संचै, पू(पु)हवि धरमव्यापार विधै करि(री) किमही न वंचै। पूंजी समान पुभि(न्नि) पाछिलो सहसगुणो करि(री) सामठो१,, करतव्य-जोग कम्माय१५ करि(री) कीयो अगाऊ एकठो दूहा- सतरासे इकहतरै(१७७१), किसनगढ चोमास । वरषा रित सब रित सिरै, मनुहर भाद्रवमास ॥७७॥ ॥८०॥ ॥८ ॥ For Private and Personal Use Only

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