Book Title: Shrutsagar 2019 12 Volume 06 Issue 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
___16
॥८३॥
॥८४॥
॥८५॥
॥८६॥
श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१९ करि अणसण आराधना, राका १६ तिथि रविवार । सिखसा खास वही भणी, सीखामणि दे सार
।।८२॥ आधी रातै ध्यांन धरि, भाव घणै भगवंत । शुकलध्यांन शुभ ध्यावतां, देवलोक पू(पु)हचंत
॥ छंद-त्रोटक॥ पुहचे परलोक सरगपुरं, घण देवह दुंद(दु)भि-नद्द१९७ घुरं१८ । धरि(री) हेत सहू प्रणमंत धुरा, सुरपति सवे हरखंत सुरा मणि माणिकजोति विमान वरं, उपजंत तिहां प्रभु भीमगुरं । कर जोडि(डी) सुर निति(त) गान करै, बजि ताल मृदंग सुरै मधुरै ततकार अहोनिसि नाचतयं १९, तब राग छत्तीसह बाजतयं । लच्छि देव तणी रिद्धि सिद्धि लही, किणही प्रति तेह न जात कही अजरं अमरं पद पाय अखी१२०, सुरलोक रहै इण भांति सुखी। परभात हुवै मिलि लोक पहू'२१, सुणि बात सरावग२२ आय सहू ततकाल सुतार बुलाय तदी, जडि(डी) काठ सिताब २३ कराय जदी। सत राखण राखि(खी) मढी१२४ विरची, पट-छांय(?) विमान समान रची ॥८८॥ पहिरीय पटंबर अंबरयं, पद्धराय विचै गुर सद्धरयं२५। कलसं धरि ऊपरि कंध करे, उठि(ठी) लेर २६ चले जल नैण भरे ॥८९।। घण ढोल निसांण अनेक धुरै, बरधू१२७ करनाल २८ कुहक्क २९ करै। विचि ताल कंसाल१३° मृदंग वजै, गहरी धुनि मेघ समान व(ग)जै गज चालत सुंडि उलालतयं३१, भूरि मूं(मू)ठिय३२ दाम उछालतयं३३ । नृतकालिय१३४ गावत गीत गुनी, नर नारी खलक्क ३५ जहांन५३६ दुनी ॥९१।। सब देखत ट(?)त-महोच्छवयं३७, धनि(न) भीमविजै सबही चवयं३८ । पूर बाहिर आय उतारि(री) प्रिथि९३९, रच चंदन-काठ चुणाइ१४० रची ॥१२॥ दिन ज्यांम१४१ चडंतह दाग१४२ दि(दी)यो, मजलै१४३ पुहचा परकांम कि(की)यो। करि(री) लोक सनान पवित्र भए, अपणै अपणै सब गेह गए
॥९३॥
॥८७||
॥९०॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36