Book Title: Shrutsagar 2019 11 Volume 06 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR November-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा कार्तिक पूर्णिमा की अनन्त शुभकामनाओं के साथ श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें असीम प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। इस अंक में आप योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी के अतिरिक्त अप्रकाशित कृतियों अन्य उपयोगी स्तंभो के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। प्रस्तुत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर की जानेवाली धार्मिक क्रियाओं के विषय में पूज्य आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से संकलित किया गया है, इस अंक में क्रमशः अनेकांतवाद और स्यादवाद पर प्रकाश डाला गया है । __ अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम शत्रुजय महातीर्थ यात्रा के उपलक्ष्य में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के पंडित श्री गजेन्द्र शाह के द्वारा सम्पादित “श्रीशनुंजय महातीर्थ छौंरी पालित संघयात्रा स्तवन" प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता मुनि श्री ऋद्धिविमलजी ने शढुंजय महातीर्थ संघयात्रा की विधि का वर्णन किया है। द्वितीय कृति के रूप में ज्ञानमंदिर के पंडित श्री पंकजकुमार शर्मा के द्वारा सम्पादित कृति “२४ जिन १३८ पूर्वभववर्णन स्तव” में मुनि संघविजयजी ने २४ तीर्थंकरों के पूर्वभव का वर्णन प्रस्तुत किया है। तृतीय लेख पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “वासुपूज्यजिन स्तवन” प्रकाशित किया गया है। इस कृति में श्री हर्षमुनि ने श्री वासुपूज्य भगवान की गुणस्तवना की है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत मुनि श्री पद्मकीर्त्तिविजयजी म. सा. के विवरण से यक्त न्यायग्रन्थ “व्यधिकरण” की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में विद्वान मुनिश्री ने नव्यन्याय के ग्रन्थ व्यधिकरण के दो लक्षणों का गुजराती भाषा में सुगम्य विवरण किया है। गतांक से जारी “पाण्डुलिपि संरक्षण विधि” शीर्षक के अन्तर्गत ज्ञानमंदिर के पं. श्री राहुलभाई त्रिवेदी द्वारा पाण्डुलिपि का महत्त्व व संरक्षण के उद्देश्य के विषय में संक्षिप्त परिचय दिया गया है, जो प्रत्येक ज्ञानभंडार के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only

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