Book Title: Shrutsagar 2019 11 Volume 06 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 SHRUTSAGAR November-2019 २४ जिनेश्वरों के भवों के बारे में स्तुति, स्तोत्र, स्तवन, चैत्यवंदनादि प्राचीन-अर्वाचीन कई कृतियाँ हैं। हमने यहाँ प्रस्तुत कृति में दर्शित भवों का कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचंद्रसूरि रचित त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र व चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन (कर्ता- सोमसुंदर गणि शिष्य) के साथ मिलान किया है, (कुत्रचित् सोमतिलकसरि रचित सप्ततिशतस्थानक ग्रंथ को भी ध्यान में लिया है) उनमें जो अंतर नजर आया है वह इस प्रकार है१. संभवनाथ भगवान का दूसरा भव त्रिषष्टि में आनत नामके नौवें देवलोक का है। प्रस्तुत कृति तथा चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में सातवें ग्रैवेयक का दर्शाया गया है। २. त्रिषष्टि तथा चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में चंद्रप्रभस्वामी भगवान के अंतिम तीन भवों का ही उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत कृति में तथा सोमतिलकसूरि रचित सप्ततिशतस्थानक ग्रंथ में ७ भवों का उल्लेख है। उसमें भी पहले भव का नाम प्रस्तुत कृति में 'ब्रह्म राजा' और सप्ततिशत में वर्म राजा' मिलता है। ३. सुविधिनाथ भगवान का दूसरा भव त्रिषष्टि में वैजयंत विमान का है, चतुर्विंशतिजिन___ भवोत्कीर्तनस्तवन तथा प्रस्तुत कृति में आनत देवलोक दर्शाया गया है। ४. शीतलनाथजी के दूसरे भव के बारे में त्रिषष्टि व प्रस्तुत कृति में प्राणत देवलोक का उल्लेख है, जबकि चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में अच्युत देवलोक दर्शाया गया है। ५. श्रेयांसनाथजी के दूसरे भव के बारे में त्रिषष्टि में सातवाँ महाशुक्र देवलोकदर्शाया गया है। प्रस्तुत कृति में बारहवें देवलोक की बात है। चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में श्रीपुष्पोत्तरसद्विमानकवरे' पाठ है। ६. वासुपूज्यस्वामी के दूसरे भव हेतु त्रिषष्टि व प्रस्तुत कृति में प्राणत देवलोक दर्शाया है और चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में सप्तम कल्प की बात है। ७. विमलनाथजी के दूसरे भव का नाम त्रिषष्टि व प्रस्तुत कृति में पद्मसेन राजा है। ___ चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में प्रजासेन राजा है। ८. अरनाथ का दूसरा भव त्रिषष्टि में नौंवाँ ग्रैवेयक है और प्रस्तुत कृति में सर्वार्थसिद्ध विमान दिया गया है। चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में जयन्तविमान है। ९. मल्लिनाथ का दूसरा भव त्रिषष्टि में वैजयन्त विमान है और प्रस्तुत कृति व चतुर्विंशतिजिनभवोत्कीर्तनस्तवन में जयन्त विमान दर्शाया है। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36