Book Title: Shrutsagar 2019 11 Volume 06 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर नवम्बर-२०१९ कृति परिचय कर्ता ने प्रारंभ में मंगलाचरण करते हुए कहा कि पापरहित जगत के स्वामी ऐसे श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ को नमस्कार, मनोवांछितपूर्ति हेतु अपने गुरु का स्मरण एवं मन की जड़ता को नष्ट करने वाली माता सरस्वती के चरणरूपी कमलयुगल का ध्यान करके वर्तमान जिनेश्वरों की भव-परंपरा का वर्णन करता हूँ। इस प्रकार देव-गुरु एवं मा सरस्वती का मंगल स्मरण करके विषय प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत कृति में २४ तीर्थंकरों के १३८ पूर्वभवों का वर्णन है। इसी क्रम में आदिजिन के १३ भव, चंद्रप्रभस्वामी के ७ भव, शांतिजिन के १२ भव, मुनिसुव्रतस्वामी के ९ भव, नेमिजिन के ९ भव, पार्श्वजिन के १० भव, महावीरस्वामी भगवान के २७ भव व अन्य तीर्थंकरों के ३-३ भवों का उल्लेख किया गया है । आवश्यकतानुसार कर्ता ने कृति में तीर्थंकरों के पूर्वभव का नाम, राजा आदि पदवी, क्षेत्र, नगरी, माता-पिता व गुरु का उल्लेख किया है। कहीं-कहीं स्पष्ट नाम न देकर मात्र विशेषणात्मक नाम का ही प्रयोग किया है। जैसे कि ऋषभदेव के नाम में (मरुदेवी के पुत्र ऐसे) मारुदेव, अजितनाथ की जगह (जितशत्रु राजा के पुत्र ऐसे) जितशत्रुभूपतनय' आदि प्रयुक्त है। आदिजिन के प्रथम भव के नाम धन सार्थवाह की जगह मात्र सार्थेश ही लिखा है। वैसे ही कहीं सुधर्मादि देवलोक का नाम दिया है और कहीं मात्र ‘सुरो' लिखकर आगे बढ़ गये हैं। जिन-जिन भगवान के पूर्वभव के गुरुओं के नाम कृति में उपलब्ध हैं, वह भगवान के नाम के साथ यहाँ दर्शाया जा रहा है अजितनाथ-अरिदमनाचार्य अभिनंदन- विमलसूरि सुमतिनाथ-सीमन्धरसूरि सुपार्श्व-अरिदमनाचार्य चंद्रप्रभ-युगन्धर सुविधि-जगदानन्द श्रेयांस-वज्रदन्त वासुपूज्य-वज्रनाभ विमल-सर्वगुप्त अनंतनाथ-चित्ररथसूरि धर्मनाथ-विमलवाहन १७-संवर अरनाथ- संवर नमिनाथ- नन्द श्लोक २६ में सभी तीर्थंकरों के भवों की संक्षिप्त गिनती बताई गई है, यथाआदिजिन के १३, चंद्रप्रभ भगवान के ७ आदि। श्लोक २७ में कर्ता ने अपने गुरु तथा स्वयं का नामोल्लेख किया है। For Private and Personal Use Only

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