________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
20
नवम्बर-२०१९ कर्ता परिचय
इस कृति के कर्ता तपागच्छीय श्रीविजयसेनसूरिजी के शिष्य संघविजय हैं । इस कर्ता की अन्य दो कृतियों प्राप्त होती है यथा- कल्पसूत्र की कल्पप्रदीपिका टीका तथा २८ श्लोक प्रमाण प्रायः अप्रगट कृति २४ जिन स्तोत्र । कर्ता का समय कल्पसूत्र की कल्पप्रदीपिका टीका के अनुसार वि.सं. १६७४ है । इसके अलावा कर्ता के बारे में विशेष कोई माहिती उपलब्ध नहीं हो पाई है। प्रत परिचय
प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा की एक मात्र प्रत क्र. ३३२६४ के आधार पर किया गया है । कुल पत्र संख्या २ है । प्रत की लिखावट सरल व सुवाच्य है, कहीं-कहीं पानी से प्रभावित होने के कारण स्याही फैल गयी है । प्रत की स्थिति श्रेष्ठ है । प्रत की लंबाई-चौडाई २५४११ है । पंक्ति संख्या १४ से १५ एवं प्रति पंक्ति अक्षर संख्या लगभग ४८ से ५० है । अक्षरों के मरोड, अक्षर मात्रा व लिखावट से १८वीं उत्तरार्द्ध यानि १७८० से १८०० के बीच प्रत लिखे जाने का अनुमान है । प्रत संशोधित नहीं है फिर भी शुद्धप्राय है । सम्भव है शुद्ध प्रत पर से प्रतिलिपि की गई हो । प्रसंगोचित अवग्रहमात्रा भी मिलती है । प्रतिलेखक ने कर्ता कृत मंगलाचरण को श्लोकांक-१ देकर कृतिगत विषयवस्तु प्रारंभ होने पर पुनः वहाँ स्वतंत्र क्रम में श्लोकांक-१ दिया है ।
२४ जिन १३८ पूर्वभववर्णन स्तव GO॥ श्रीशर्खेश्वरपार्श्वनाथमनघं नत्वा जगत्स्वामिनं, स्मृत्वा च स्वगुरुं समीहितकृतौ स्वाहाभुजां शाखिनम् । वाग्देवीचरणारविन्दयुगलं ध्यात्वा मनोजाड्यभिद्, वक्ष्ये सम्प्रति तीर्थकृद्भवततिं संवित्तये मादृशाम् १. आदिनाथ सार्थेशो१ युगलं२ सुरो३ नरपतिः४ स्वर्गे द्वितीये सुरः५, षष्ठे जन्मनि मेदिनीपरिवृढः श्रीवज्रजङ्घाभिधः६। युग्मी देवकुरौ७ सुरोऽष्टमभवे८ वैद्यो९-ऽच्युते निर्जर:१० षट्खण्डाधिपति ११स्त्वनुत्तरसुरः१२ श्रीमारुदेवो१३ऽवतात् ॥१(२)॥
॥१॥
For Private and Personal Use Only