Book Title: Shrutsagar 2019 11 Volume 06 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 श्रुतसागर नवम्बर-२०१९ पुस्तक समीक्षा रामप्रकाश झा पुस्तक नाम - व्यधिकरणम् (भाग-१,२/२) विवरण - मुनि श्री पद्मकीर्तिविजयजी प्रकाशक - सम्यग् साहित्य प्रकाशन, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष - वि. सं. २०७५ मूल्य - २००/- (प्रत्येक भाग) भाषा - संस्कृत जैनशासन में प्राचीन काल से ही न्याय का महत्त्व स्वीकार किया गया है। पूर्वकाल में प्राचीन न्याय ही अस्तित्व में था। पदार्थ का तर्कयुक्त निरूपण करने के लिए अनेक दर्शनकारों ने इसका उपयोग किया था। परन्त कालान्तर में क्रमशः अनेक नई-नई तर्कशैलियाँ विकसित हुईं। इस नवविकसित तर्कशैली को नव्यन्याय के नाम से जाना जाने लगा। आधुनिक दर्शनकारों ने इस नई शैली का व्यापक रूप से उपयोग किया है। जैनों ने भी अपने शास्त्रसम्मत स्याद्वाद को नया रूप देने के लिए इस नई शैली को स्वीकार किया। जैनशासन की विद्यमान श्रुतसमृद्धि का अवलोकन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि इस शैली का सर्वाधिक उपयोग यदि किसी जैन विद्वान ने किया है तो वे न्यायाचार्य, न्यायविशारद महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज हैं। उन्होंने नव्यन्याय की तर्कशैली का आधार लेकर अन्य दर्शनों के द्वारा जिनशासन के ऊपर हए असत् आक्षेपों का निराकरण करने के साथ-साथ स्याद्वाद सिद्धान्त का समर्थन करते हुए जैनशासन की जयपताका दिगदिगन्त में लहरायी। ____ नव्यन्याय का भारतीय दर्शनों में एक विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्री गंगेशोपाध्याय नव्यन्याय के आद्य पुरुष के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने तत्त्वचिंतामणि की रचना की, जिसके ऊपर अनेक विद्वानों ने टीकाएँ रची हैं। श्री रघुनाथ शिरोमणि भट्टाचार्य ने दीधिति नामकी टीका रची। दीधिति के ऊपर श्री मथुरानाथ तर्कवागीश, श्री जगदीश तर्कालंकार तथा गदाधर भट्टाचार्य ने अलग-अलग टीकाओं की रचना की। इन टीकाओं में चार प्रमाणों – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा शब्द में से अनुमान प्रमाण के ऊपर प्रकाश डाला गया है। अनुमान प्रमाण की सिद्धि व्याप्ति के द्वारा हो सके, इसके लिए प्रारम्भ में हेतु और साध्य के सहचार के रूप में व्याप्ति का विचार किया गया और व्याप्ति के दो भाग किए गए – १. पूर्वपक्षव्याप्ति और २. उत्तरपक्षव्याप्ति । पूर्वपक्षव्याप्ति २२ हैं, पाँच व्याप्तिपंचक, तीन सिंहव्याघ्र और For Private and Personal Use Only

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