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SHRUTSAGAR
___November-2019 प्राचीन व ऐतिहासिक सम्पदाओं अथवा कलाकृतियों को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सके।
संरक्षण के तीन प्रकार हैं, १) सुरक्षात्मक संरक्षण (Preventive conservation) २) उपचारात्मक संरक्षण (Curative conservation) ३) पुनरुद्धार (Restoration)।
सुरक्षात्मक संरक्षण- सभी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से की गई सुरक्षात्मक प्रक्रिया, जिससे भविष्य में हस्तप्रत या कलाकृति को नष्ट होने से बचाया जा सके। (वस्तु यथावत् रूप में विद्यमान रहे)
उपचारात्मक संरक्षण- सभी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किया गया उपचार जिससे नष्ट हो रही या खंडित हो चुकी हस्तप्रत या कलाकृति को मजबूती प्रदान कर उपयोग में लाने योग्य बनाया जा सके।
पुनरुद्धार- किसी भी विशीर्ण हो चुकी ऐतिहासिक संपदा अथवा कलाकृति को मरम्मत के द्वारा उसके मूल रूप में लाने की प्रक्रिया को पुनरुद्धार कहते हैं।
संरक्षण कार्य के अंतर्गत प्राथमिक उपचार की दृष्टि से सुरक्षात्मक संरक्षण महत्त्वपूर्ण होने के कारण हम सर्वप्रथम सुरक्षात्मक संरक्षण के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।
क्रमशः
श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे.
निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर)
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