Book Title: Shrutsagar 2018 07 Volume 05 Issue 02 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आध्यात्मिक पदो (हरिगीत छंद) कारूण्य मैत्री भावना छे वेद साचा आदरो, मधुपर्कमा हिंसा कथे ते वेद श्रद्धा परिहरो; निज आत्मवत् जीवो सकल निष्पाप करणी सुख करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्रभु नामथी पशुओ तणी हिंसा थती तरवारथी, सर्वज्ञना ए मंत्र नहि निष्पाप शास्त्रो ए नथी; सर्वज्ञ प्रभुना वदनथी कारुण्य ध्वनियो उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्राचीन वेदोमां लख्यं साचुं सकळ नहि मानवुं, प्राचीन सहु सर्वज्ञनां वचनो नहीं मन आणवुं; प्राचीन अर्वाचीनथी साचुं ज लेवुं दिल धरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. मुंझो न दृष्टिरागथी भूलो न भरमाया थकी, मध्यस्थ थइने पारखो साचुं मळे वेदो थकी; समभाव मनमां आदरी, जाणो परीक्षाओ करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आचार्य वाचक साधुओ वेदो अमारा बोलता, ते जीवता ने जागता परमात्ममर्मो खोलता; वेदो शुभंकर साध्वीओ परमार्थवृत्ति आदरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आत्मा अमारो वेद छे, जेमा अनन्ता गुण आत्मानुभव सहु वेद छे, पामी महन्तो सुख वर्या; अध्यात्मज्ञान ज वेद छे संसारवारिधि तरी, भर्या, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only 36 37 38 39 40 41 (क्रमशः)Page Navigation
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