Book Title: Shrutsagar 2018 07 Volume 05 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 श्रुतसागर जुलाई-२०१८ (४) विजयगच्छना आचार्योनु विहारक्षेत्र ग्रंथोनी पुष्पिकाओ अने प्रशस्तिना आधारे विचारीए तो तेमनी परंपराना कल्याणसागर, सुमतिसागर, विनयसागरादि आचार्यो द्वारा सं. १७०४, १७०९, १७५२, १८२० जेवा जुदा जुदा वर्षे मेवाडना विविध जिनालयोमा प्रतिष्ठा थइ । तो बीजी बाजु आ बाजुना उदयपुर, कूकडेश्वर जेवा जुदा जुदा गामडाओमां रही कवि कल्याणसागर, कवि गुणसागर जेवा कविओए सं. १६९४ मां दान-शील-तप-भाव तरंगिणीनी, १६७६ मां वासुदेवरास जेवा अनेकविध ग्रंथोनी रचना करी, ते सिवाय रामरसायण जेवा ग्रंथोना आलेखन पण मेवाड प्रान्तमा विचरता विचरता घणा विद्वानोए कर्या । आम घणा वर्षो सुधी आ क्षेत्रमा ज्ञान-ध्यानादि माटे विजयगच्छना आचार्यो मेवाड अने आसपासना प्रदेशोमां विहारादि करता रह्या होय तेवू मानवू जोईए अने तेवा प्रसंगे तेमना चारित्रथी प्रभावित थई श्रावकोए तेमना हस्ते प्रतिष्ठा, संघ यात्रादि अनेक शुभ कार्यो कराव्या होय ते, पण बने। माटे आपणा कृतिकारश्री पण लांबा काळथी विचरता होई संघ साथे केसरियाजी गया तेवू विचारवू अयोग्य नथी। (५) दरेक पद्य कृतिनी रचना प्रायः कोइने कोई छंदमां तेना बंधारण मुजब थती होय छे। अहीं कविए काव्यान्तमां 'कळश' स्वरूपे काव्य- समापन क£ छ। हवे कदाच तेना स्वरूप बंधारण मुजब 'सागर' के तेना पर्यायार्थी शब्दथी कृतिनी रसाळताने ठेस पहोंचती हशे। तेथी कविने 'विनयसूरि' के 'सुमतिसूरि' एम नामोल्लेख करवो वधु योग्य लाग्यो होय तेवू कल्पी शकाय। उपरोक्त दरेक मुद्दा पर चिंतन करता कृतिकार विनयसूरि पोते ज विनयसागरसूरि होई केसरियाजी तीर्थना प्रतिष्ठापक छे तेवू पण स्पष्ट थाय छे। प्रत परिचय - प्रस्तुत कृति संबंधी एकमात्र प्रत आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामां उपलब्ध छ । प्रत क्रमांक ५८२५९ पर पाना नं. २८ थी २९ सुधी प्रस्तुत कृति आलेखायेली छे। आ प्रतमां कुल ४१ पत्रो छे। प्रारम्भ वच्चे अने अन्तना पानाओ न होवाथी प्रत अपूर्ण छ। लिपिविन्यास, लेखनकला तथा कागळ आदिना आधारे आ प्रत विक्रमनी १९मी सदीनी होय तेम लागे छ । प्रत्येक पत्रमा १७ पंक्तिओ अने प्रत्येक पंक्तिमा ३८ थी ४६ अक्षरो छ। लेखन कार्य सुंदर अने स्वच्छ अक्षरोमां करेलुं छे । प्रतमां गेरू लाल रंगथी अंकित विशेष पाठ छे। अशुद्ध पाठोने पीळा रंगथी For Private and Personal Use Only

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