Book Title: Shrutsagar 2018 07 Volume 05 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 July-2018 SHRUTSAGAR भवांतरे पण ॥४२॥ 'सन्तोषशीलसुधियो निजसेवकार्थ-दानैकपिङ्गसदृशो 'वरपात्रलाभम् । 'दीवं पुरं शिवकरं किल ते श्रयन्ति ये संस्तवं तव विभो! रचयन्ति भव्याः ॥४३॥ १) संतोष शील सुधीनो, २) पोताना सेवकनइ दान देवानइ विषइ धनद सरिखानो, ३) प्रधान पात्र लाभनइ, ४) दीव नगरनइ, ५) कल्याणकरनइ, ६) किल ते जन, ७) आश्रय पामइ, ८) जे संस्तव तुम्हारु प्रभो, ९) रचइ, १०) भव्य प्राणिनः ॥४३॥ श्रीमद्गणेशशिष्य प्रेम विनिर्मित गिरिधरनुतिपठनात्। 'भय-दुःखानां भव्या-'अचिरान् मोक्षं प्रपद्यन्ते ॥४४॥ १) श्रीमान् पूज्य ऋषि श्रीगणेशजी, २) तस्य शिष्य ऋषि प्रेमजी, ३) निपजावीउ, ४) श्रीकेशवजीनी स्तुति भणता, ५) भय दुःखना, ६) भव्यजीव, ७) ततकाल मोक्ष पामइ ॥४४॥ ॥ इति श्रीकल्याणमन्दिरचतुर्थपादगृहितसमस्यास्तोत्रम् ॥ || श्री ६आचार्यजी ऋषि श्रीइकेशवजीनी स्तुतिः पूज्य ऋषि श्रीगणेशजी तस्य शिष्य प्रेमजीमुनिना कृता || लेखक पाठकयो(:) शुभं भवतु ॥ श्रीः ॥ क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं ? पुस्तकें भेंट में दी जाती हैं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में आगम, प्रकीर्णक, औपदेशिक, आध्यात्मिक, प्रवचन, कथा, स्तवन-स्तुति संग्रह आदि विविध प्रकार के साहित्य तथा प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी, पुरानी हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं की भेंट में आई बहुमूल्य पुस्तकों की अधिक नकलों का अतिविशाल संग्रह है, जो हम किसी भी पाठशाला, ज्ञानभंडार को भेंट में देते हैं. संग्रह की सूची भी उपलब्ध है. यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं तो यथाशीघ्र संपर्क करें. पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी. For Private and Personal Use Only

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