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आध्यात्मिक पदो
(हरिगीत छंद)
कारूण्य मैत्री भावना छे वेद साचा आदरो, मधुपर्कमा हिंसा कथे ते वेद श्रद्धा परिहरो; निज आत्मवत् जीवो सकल निष्पाप करणी सुख करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
प्रभु नामथी पशुओ तणी हिंसा थती तरवारथी, सर्वज्ञना ए मंत्र नहि निष्पाप शास्त्रो ए नथी; सर्वज्ञ प्रभुना वदनथी कारुण्य ध्वनियो उछळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. प्राचीन वेदोमां लख्यं साचुं सकळ नहि मानवुं, प्राचीन सहु सर्वज्ञनां वचनो नहीं मन आणवुं; प्राचीन अर्वाचीनथी साचुं ज लेवुं दिल धरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. मुंझो न दृष्टिरागथी भूलो न भरमाया थकी, मध्यस्थ थइने पारखो साचुं मळे वेदो थकी; समभाव मनमां आदरी, जाणो परीक्षाओ करी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आचार्य वाचक साधुओ वेदो अमारा बोलता, ते जीवता ने जागता परमात्ममर्मो खोलता; वेदो शुभंकर साध्वीओ परमार्थवृत्ति आदरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आत्मा अमारो वेद छे, जेमा अनन्ता गुण आत्मानुभव सहु वेद छे, पामी महन्तो सुख वर्या; अध्यात्मज्ञान ज वेद छे संसारवारिधि तरी,
भर्या,
एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
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(क्रमशः)