Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कक्कावलि (गतांकथी आगळ...) __ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी आव्या आव्या शुं कहो छो, आव्या चाल्या जाय; त्रण लोकमां कीर्ति जेनी, आव्या ते सुखदाय. सुणजो०॥५१॥ बेठा बेठा शुं कहो छो, बेठा उठे भ्रात; बेठा क्षायिकभावे सिद्धो, धन तेना अवदात. सुणजो०॥५२॥ उठ्या उठ्या शुं कहो छो, जोने उठे जीव; उठ्या आतमभावे संतो, जाणी जीवने शीव. सुणजो०॥५३॥ जोगी जोगी शुं कहो छो, जोगी साधे जोग; अलख खलकमां सच्चा समजी, भोगवता नहि भोग. सुणजो०॥५४॥ जूठं जूठं शुं कहो छो, जूठी जगझंझाळ; जूठामां मारूं जे माने, ते जन जगमां बाळ. सुणजो०॥५५॥ भक्ति भक्ति सेवो सज्जन, भक्ति सुखनुं मूळ; देवगुरूनी भक्ति विण ते, किरिया जाणो धूळ. सुणजो०॥५६॥ मंगल मंगल जिनवर जापे, गणजो सहु नवकार; चौद पूर्वमां मंगल मोटुं, उतरशो भवपार. सुणजो०॥५७॥ गुर्जर देशे साणंद गामे, ओगणीश त्रेसठ साल; अषाड सुदि सातम सांजे, स्तवना मंगल माल. सुणजो०॥५॥ समजी गणजो श्रीनवकार, तेथी उतरशो भवपार; भणशे गणशे जे जन भावे, तेह लहे सुखसार. सुणजो०॥५९॥ बुद्धिसागर अवसर पामी, धर्म हृदयमां धार; समजी गणजो श्रीनवकार, तेथी उतरशो भवपार. सुणजो०॥६०॥ For Private and Personal Use Only

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