Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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मुझथी हुं तुझी रे भाई, निज निज ठोरे निवास्या'; बिहु मिल्यां मंथन शोभे बिहुं पगि, एकला कोइ न खासा मोटा छोटा सहु कामाला, आप आपणे कारे'; काम पडे ज्यारे सुईनुं, तो कहोने स्यूं सीझे तरुआरे ' लेखण खडिये लेख लिखाये, काठ अगनि परजाले; पांचे पणुंचो संपथी सिद्धि, बे कर पारण का बेकरे सोवन कडला बनावो, भेला भोजन दाने; तिणे प्रभुने बिहुं हाथे तिलक करो, सूकड केसर वाने'
प्रभु पूज्याथी प्रभुता पामे, विमला कमला वरषे; आ भवि पर-भवि अमर थईने, पूरण-पद आकरषे
ते माटे तुम्हे त्रीजी पूजा, द्रव्यथी भाव बनावो; तो उदैसोमसूरे अलबेला, उत्तम आनंद पाव जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स । बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैर्नपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम्
मान गरवना ठांम ते, अंस खभा ने खंध;
दरप अहंपद एहना, सहुना कहुं संबंध
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खंध भूमिथी जाया भुज ते, भुजबले चारित्र लीधा रे; प्रभुभुज भवभुज-छेदकुठारा, भुजे भवजल तरी सीधा रे
1. जग्याए, 2. कार्यमां, 3. तलवारथी, 4. वस्तु वडे, 5. अविनीतपणुं(?).
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August-2017
॥८॥ मेरे० त्रीजी०
॥९॥ मेरे० त्रीजी०
॥१०॥ मेरे० त्रीजी ०
॥११॥ मेरे० त्रीजी०
॥१२॥ मेरे० त्रीजी०
॥१३॥ मेरे० त्रीजी०
ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय ] जलं' चन्दनं` अक्षतं फल फूल' धूप दीप नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥
॥अथ चतुर्थ पूजा प्रारंभ ॥ ॥ दुहा ॥
।। ढाल । आज गइति हुं समवसरणमां- ए देशी ।। चतुर कहुं हिवे च्यारमि पूजा, च्यारमुं अंग छे अंसा रे; ऊंचे वंशे वंश छे ऊंचो, इम खंधे अवनीसा' रे
॥२॥
(इम कही कलश ढालवो)
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॥१॥ चतुर०
॥२॥ चतुर०

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