Book Title: Shrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 17 मुझथी हुं तुझी रे भाई, निज निज ठोरे निवास्या'; बिहु मिल्यां मंथन शोभे बिहुं पगि, एकला कोइ न खासा मोटा छोटा सहु कामाला, आप आपणे कारे'; काम पडे ज्यारे सुईनुं, तो कहोने स्यूं सीझे तरुआरे ' लेखण खडिये लेख लिखाये, काठ अगनि परजाले; पांचे पणुंचो संपथी सिद्धि, बे कर पारण का बेकरे सोवन कडला बनावो, भेला भोजन दाने; तिणे प्रभुने बिहुं हाथे तिलक करो, सूकड केसर वाने' प्रभु पूज्याथी प्रभुता पामे, विमला कमला वरषे; आ भवि पर-भवि अमर थईने, पूरण-पद आकरषे ते माटे तुम्हे त्रीजी पूजा, द्रव्यथी भाव बनावो; तो उदैसोमसूरे अलबेला, उत्तम आनंद पाव जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स । बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैर्नपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम् मान गरवना ठांम ते, अंस खभा ने खंध; दरप अहंपद एहना, सहुना कहुं संबंध Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंध भूमिथी जाया भुज ते, भुजबले चारित्र लीधा रे; प्रभुभुज भवभुज-छेदकुठारा, भुजे भवजल तरी सीधा रे 1. जग्याए, 2. कार्यमां, 3. तलवारथी, 4. वस्तु वडे, 5. अविनीतपणुं(?). For Private and Personal Use Only August-2017 ॥८॥ मेरे० त्रीजी० ॥९॥ मेरे० त्रीजी० ॥१०॥ मेरे० त्रीजी ० ॥११॥ मेरे० त्रीजी० ॥१२॥ मेरे० त्रीजी० ॥१३॥ मेरे० त्रीजी० ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय ] जलं' चन्दनं` अक्षतं फल फूल' धूप दीप नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ ॥अथ चतुर्थ पूजा प्रारंभ ॥ ॥ दुहा ॥ ।। ढाल । आज गइति हुं समवसरणमां- ए देशी ।। चतुर कहुं हिवे च्यारमि पूजा, च्यारमुं अंग छे अंसा रे; ऊंचे वंशे वंश छे ऊंचो, इम खंधे अवनीसा' रे ॥२॥ (इम कही कलश ढालवो) 11211 11211 ॥१॥ चतुर० ॥२॥ चतुर०

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36